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________________ ऊर्जा ही बच रहती है केवल। मैं बन जाता हं फूल और फूल बन जाता है मैं।' यह होती है निर्विचार की अवस्था, किसी चिंतन-मनन की नहीं, बल्कि अस्तित्व की। सवितर्क है प्रथम चरण, निर्वितर्क है उसी दिशा में अंतिम चरण। सविचार है प्रथम चरण; उसी दिशा में, निर्विचार है अंतिम चरण, दो धरातल हैं। तो भी पतंजलि कहते हैं कि वही व्याख्या प्रयुक्त होती है। अब तक सर्वोच्च है निर्विचार। पतंजलि ज्यादा ऊंची अवस्थाओं तक भी पहुंचेंगे, क्योंकि थोड़ी और बातें स्पष्ट करनी हैं, और वे चलते हैं बहुत धीरे – धीरे –क्योंकि यदि वे बहुत तेज चलें तो तुम्हारे लिए समझना संभव न होगा। हर क्षण वे जा रहे हैं ज्यादा और ज्यादा गहरे में। धीरे – धीरे, कदम-दर-कदम, वे तुम्हें ले जा रहे हैं अपरिसीम सागर की ओर। वे नहीं विश्वास रखते है अचानक-संबोधि में, बल्कि विश्वास रखते हैं क्रमिक-संबोधि में, इसीलिए उनका आकर्षण बहत बड़ा है। बहुत सारे लोग हुए हैं जिन्होंने बातें की हैं अचानक-संबोधि के बारे में, लेकिन वे नहीं आकर्षित कर पाए हैं अधिकांश लोगों को, क्योंकि यह बात बिलकुल अविश्वसनीय है कि अचानक संबोधि संभव होती है। तिलोपा कह सकते हैं ऐसा, लेकिन तिलोपा क्या कहते हैं, बात उसकी नहीं। बात है. क्या कोई समझ लेता है इसे? इसीलिए बहुत से तिलोपा मिट गए, लेकिन पतंजलि का आकर्षण जारी रहता है, क्योंकि कोई नहीं समझ सकता तिलोपा के उन जंगली फूलों को। वे अचानक प्रकट हो जाते हैं अविश्वसनीय रूप से और वे कहते हैं, ' अचानक तुम भी बन सकते हो हम जैसे।' यह बात समझ में आने जैसी नहीं होती। उनके चुंबकीय व्यक्तित्व के प्रभाव में तुम सुन सकते हो उन्हें, लेकिन तुम विश्वास नहीं कर सकते उनका। जिस क्षण तुम छोड़ते हो उन्हें तो तुम कहोगे, 'यह आदमी कुछ कह रहा है जो मेरे पार का है। यह बात गुजर जाती है मेरे सिर के ऊपर से!' कई तिलोपा हुए हैं, बोले हैं, प्रयत्न करते रहे हैं, लेकिन वे नहीं कर पाते रहे बहुत सारे लोगों की मदद। कभी-कभार ही कोई समझा होगा उन्हें। इसीलिए तिलोपा को तिब्बत जाना पड़ा था शिष्य खोजने के लिए। यह इतना विशाल देश, और वे नहीं खोज सके एक भी शिष्य। और बोधिधर्म को चीन जाना पड़ा शिष्य खोजने के लिए। यह प्राचीन देश, हजारों साल से कार्य करता रहा है धार्मिक आयामों पर, और उन्हें नहीं मिल सका एक भी शिष्य। हो, यह कठिन था तिलोपा के लिए, कठिन था बोधिधर्म के लिए एक भी शिष्य को खोजना। कठिन होता है किसी ऐसे को खोजना जो कि समझ सके तिलोपा को, क्योंकि वे बात करते हैं लक्ष्य की। वे कहते हैं, 'कोई मार्ग नहीं है, और कोई विधि नहीं है।' वे खड़े हुए हैं पहाड़ की चोटी पर और वे कहते हैं, 'कोई मार्ग नहीं है।' और तुम अपने दुख में खड़े हुए हो अंधकार में और सीलन भरी घाटी में। तुम देखते हो तिलोपा को और तुम कहते हो, 'शायद-पर कैसे, कोई कैसे पहुंचता है?' तुम पूछते चले जाते हो, 'कैसे?'
SR No.034096
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages419
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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