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________________ यह जागरूकता किसी सपने को घटित होने न देगी। तुम केवल तभी सपना देख देख सकते हो, जब जागरूकता खो जाती है। जब तुम जागरूक नहीं होते हो, जब तुम गहरे सम्मोहन में होते हो, तब तुम सपने देखना शुरू कर देते हो। सपने केवल तभी घटित हो सकते है, जब तुम पूरी तरह से अजाग्रत होते हो। जितनी ज्यादा अजाग्रतता होती है, उतने ज्यादा सपने दिखते है। ज्यादा जागरूकता हो, कम सपने दिखते है। यदि तुम पूरी तरह से जागरूक होते हो तो सपने आते ही नहीं। सपने भी असंभव हो जाते है उसके लिए, जो स्वयं में गहरे स्थित हो गया है, जिसने आंतरिक सत्ता को सीधे जान लिया है। यह सम्यक ज्ञान का पहला स्रोत है। दूसरा स्रोत अनुमान है। यह गौण है लेकिन यह भी ध्यान रखने लायक है। क्योंकि जैसे तुम बिलकुल अभी हो, तुम नहीं जानते कि तुम्हारे भीतर आत्मा है या नहीं। अपने आंतरिक अस्तित्व का तुम्हें कोई सीधा ज्ञान नहीं है, तो करोगे क्या? दो संभावनाएं हैं। पहली-तुम बिलकुल अस्वीकार कर सकते हो कि तुम्हारी सत्ता का कोई आंतरिक मर्म है; कि कोई आत्मा है। जैसे चार्वाकों ने किया या जैसा पश्चिम में एपिकूरस, मार्क्स, एंजेल्स या कई दूसरों ने स्थापित किया है। या एक और संभावना है। पतंजलि कहते हैं कि यदि तुम जानते हो तो अनुमान की कोई जरूरत ही नहीं है। लेकिन यदि तुम नहीं जानते, तब अनुमान करना सहायक होगा। उदाहरण के लिए, देकार्त, पश्चिम का एक महान विचारक, उसने अपनी दार्शनिक खोज संदेह सहित आरंभ की। उसने बिलकुल शुरू से यह दृष्टिकोण अपनाया है कि वह किसी ऐसी चीज में विश्वास नहीं करेगा जब तक वह असंदिग्ध न हो। जिस पर संदेह किया जा सकता था, वह संदेह करता था। और वह उस बात को ढूंढ निकालने की कोशिश करता, जिस पर संदेह न किया जा सकता था। और केवल उसी बात के बिंदु पर वह अपने चिंतन का सारा भवन निर्मित करता था। एक सुंदर खोजईमानदार, कठिन, खतरनाक। ___ उसने ईश्वर को अस्वीकार किया क्योंकि तुम ईश्वर पर संदेह कर सकते हो। बहुतों ने संदेह किया है, और उनके संदेहों का उत्तर कोई भी नहीं दे पाया है। वह अस्वीकार करता गया। जिस किसी पर भी संदेह किया जा सकता था, जो कुछ संदिग्ध माना जा सकता था, उसने अस्वीकार किया। अनेकों वर्ष वह निरंतर मानसिक अशांति में रहा। अंततः वह उस बात से जा टकराया, जो असंदिग्ध थी। वह स्वयं को अस्वीकार नहीं कर सका; यह असंभव था। तुम नहीं कह सकते, 'मैं नहीं हूं।' यदि तुम ऐसा कहते हो, तुम्हारा कहना ही सिद्ध करता है कि तुम हो। यह उसकी बुनियादी चट्टान थीकि 'मैं स्वयं को अस्वीकार नहीं कर सकता। मैं नहीं कह सकता कि मैं नहीं हैं। यह कौन कहेगा? संदेह करने के लिए भी, मेरा होना जरूरी है।'
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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