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________________ लेकिन केवल साक्षीभाव द्वारा यह कैसे घटित होता है? वह विपरीत, वह बंधन घटित हुआ है साक्षी न होने से। बंधन घटित हुआ है, क्योंकि तुम जागरूक नहीं हो। तो बंधन छूट जाये, यदि तुम जागरूक हो जाओ। बंधन केवल अचेतनता है। किसी और चीज की जरूरत नहीं है सिवाय इसके कि जो कुछ तुम करो उसमें और भी सजग हो जाओ। तुम यहां बैठे हुए मुझे सुन रहे हो; तुम जागरूकता से सुन सकते हो या तुम बिना जागरूकता के सुन सकते हो। बिना जागरूकता के भी सुनना हो जायेगा, लेकिन वह एक दूसरी चीज होगी। गुण में अंतर होगा। तब तुम्हारे कान सुन रहे होंगे,लेकिन तुम्हारा मन कहीं और ही कार्य कर रहा होगा। ___तब किसी तरह कुछ शब्द तुममें भर जायेंगे। वे मिल-जुल कर उलझ जायेंगे। और तुम्हारा मन अपने ढंग से उनकी व्याख्या कर लेगा। वह अपने विचार उनमें रख देगा। हर चीज गड़बड़ और धुंधली हो जायेगी। तुमने सुन लिया होगा, लेकिन बहुत बातें बाहर से ही गुजर जायेगी और बहुत-सी बातों को तुम सुन न पाये होगे। तुम चुनोगे। तब सारी बात ही विकृत हो जायेगी। यदि तुम सजग होते हो, जिस घड़ी तुम सजग होते हो, सोचना समाप्त हो जाता है। सजगता के साथ तुम सोच नहीं सकते। यदि पूरी ऊर्जा सचेत हो जाती है, तब विचार के लिए ऊर्जा बची ही नहीं। यदि तुम एक क्षण के लिए भी सजग हो जाते हो, तो तुम केवल सुनते हो। कोई बाधा नहीं रहती। जो मैंने कहा है, उसके साथ मिश्रित होने के लिए तुम्हारे अपने शब्द नहीं रहे। तुम्हें अर्थ लगाने की जरूरत न रही। प्रभाव सीधा है। यदि तुम सजगता से सुन सकते हो, तब मैं जो कह रहा हूं वह अर्थपूर्ण हो सकता है, या अर्थपूर्ण नहीं भी हो सकता है,लेकिन तुम्हारा सजगता के साथ सुनना महत्वपूर्ण अर्थ रखेगा। यह सजगता ही तुम्हारी चेतना को एक शिखर तक ले जायेगी। अतीत विलीन हो जायेगा, भविष्य मिट जायेगा। तुम कहीं और न होओगे। तुम होओगे केवल अभी और यहीं। और मौन के उसी क्षण में जब सोचना नहीं रहा, तुम अपने स्रोत के साथ गहरा संपर्क पा जाओगे। और वह स्रोत है आनंद। वह स्रोत दिव्य है। इसलिए करना है तो केवल यही कि हर बात सजगता के साथ करनी है। छठवां प्रश्न: जब लाओत्स पर बात कर रहे हों तो आप एक ताओवादी संत बन जाते हैं जब तंत्र पर बोल रहे हों तो आप तांत्रिक बन जाते हैं जब भक्ति की बात कर रहे हों तो आप संबोधि पाए हए भक्त बन जाते हैं जब योग पर बोल रहे हैं लेई आप एक पूर्ण योगी बन गये है क्या आप कृपया स्पष्ट करेंगे कि किस तरह यह अदभत घटना संभव हो पायी है?
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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