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________________ मिल जायेंगे। तुम कुछ जोड़जाड़ करोगे। लेकिन वास्तव में तुम जानते नहीं हो। अन्यथा तुम्हारा उत्तर तुरंत आता। मैने सुना है एक शिक्षक के बारे में, प्राइमरी स्कूल की एक महिला शिक्षक के बारे में, उसने बच्चों से पूछा, 'क्या तुम्हारे पास कोई प्रश्न है? एक छोटा लड़का उठ खड़ा हुआ और कहने लगा, 'मेरा एक प्रश्न है और मैं इसे पूछने की प्रतीक्षा कर रहा था कि कब आप प्रश्न पूछने के लिए कहेंगी-पृथ्वी का वजन कितना है?' शिक्षिका तो घबड़ा गयी क्योंकि उसने कभी इस बारे में सोचा न था; उसने कभी इस बारे में पढ़ा न था। सारी पृथ्वी का वजन कितना है? उसने एक चालाकी चली, जिसे शिक्षक जानते हैं। उन्हें चालाकियां चलनी पड़ती है। उसने कहा, 'हां प्रश्न महत्वपूर्ण है। कल के लिए हर एक को इसका उत्तर खोजना है।' उसे समय चाहिए था। वह बोली, 'कल मै यह प्रश्न पूछंगी। जो कोई सही उत्तर लायेगा उसे उपहार मिलेगा।' सारे बच्चे खोजते रहे, खोजते रहे लेकिन उन्हें उत्तर नहीं मिला। शिक्षिका लाइब्रेरी में दौड़ी गयी। सारी रात वह खोजती रही और सुबह हो गयी तब कहीं वह पृथ्वी का वजन पता लगा सकी। वह बहुत खुश थी। वह स्कूल आ पहुंची और बच्चे थे वहां। वे थक चुके थे। उन्होंने कहा, 'हम नहीं पता लगा सके। हमने मम्मी से पूछा और हमने डैडी से पूछा। और हमने सबसे पूछा। कोई नहीं जानता। यह प्रश्न बहुत कठिन लगता है।' शिक्षिका हंस पड़ी और बोली, 'यह कठिन नहीं है। मैं उत्तर जानती थी, लेकिन मै तो यह देखना चाह रही थी कि तुम पता लगा सकते हो या नहीं। पृथ्वी का वजन है....।' वह छोटा बच्चा जिसने प्रश्न उठाया था, फिर खड़ा हो गया और पूछने लगा, 'लोगों को मिला कर या बिना लोगों के।' तुम बुद्ध को ऐसी स्थिति में नहीं डाल सकते। कहीं उत्तर खोज लेने की बात नहीं है। बात वस्तुत: तुम्हें उत्तर देने की भी नहीं है। तुम्हारा प्रश्न तो उनके लिए केवल एक बहाना है। तुम जब उनके सामने प्रश्न रखते हो, तो वे सीधे अपना प्रकाश प्रश्न की ओर मोड़ देते है और जो कुछ प्रकट होता है, उन्हें दिख जाता है। वे तुम्हें उत्तर देते है। वह उनके सही केंद्र से दिया जाने वाला उत्तर है प्रमाण। पतंजलि कहते है कि मन की पांच वृत्तियां है। पहला है प्रमाण-सम्यक ज्ञान। यदि सम्यक ज्ञान का यह केंद्र तुममें क्रियाशील होने लगता है, तो तुम मनीषी हो जाओगे, एक संत। तुम धार्मिक हो जाओगे। और इससे पहले तम धार्मिक नहीं हो सकते। इसीलिए जीसस या मोहम्मद पागल दिखते हैं। क्योंकि वे बहस नहीं करते, वे अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से सामने नहीं लाते। वे तो सीधे निश्चयपूर्वक कहते हैं। यदि तुम जीसस से पूछते, 'क्या
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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