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________________ तुममें ही छिपा है। जब मन गैर-दुख की अवस्था में होता है तो आनंद बहने लगता है। यह मन से नहीं आता, यह कहीं पार से आ रहा होता है। इसलिए मन की वृत्तियां क्लेश का स्रोत भी हो सकती हैं और अक्लेश की भी। मन की वृत्तियां पाँच हैं। वे हैं-प्रमाण (सम्यकज्ञान), विपर्यय (मिथ्याज्ञान), कल्पना निद्रा और स्मृति। पहला है 'प्रमाण' – सम्यक ज्ञान। संस्कृत का शब्द 'प्रमाण' बहुत गहरा है और वास्तव में अनुवादित हो भी नहीं सकता। 'सम्यक ज्ञान'. तो अर्थ की परछाईं मात्र है, बिलकुल सही अर्थ नहीं है क्योंकि अंग्रेजी में भी ऐसे शब्द नहीं हैं जो 'प्रमाण' को अनूदित कर सकें।'प्रमाण' आता है मूल शब्द 'प्रमा' से। इस विषय में बहत-सी चीजें समझ लेनी है। पतंजलि कहते हैं कि मन की एक क्षमता होती है। यदि वह क्षमता ठीक तरह से निर्देशित की जाये, तब जो कुछ भी जाना जाये, सत्य होता है-वह स्वयं सिद्ध होता है। लेकिन हम इसके गरूक नही, क्योंकि हमने कभी इसका उपयोग नहीं किया है। मन का वह आयाम अप्रयुक्त रह गया है। यह ठीक ऐसे है, जैसे कमरा अँधेरा है, तुम उसमें आते हो। तुम्हारे पास टॉर्च है, लेकिन तुम उसका प्रयोग नहीं कर रहे, इसलिए कमरा अंधेरा ही बना रहता है। तुम इस मेज से, उस कुर्सी से ठोकर खाते चले जाते हो। और तुम्हारे पास टॉर्च है! लेकिन टॉर्च जलानी तो पड़ेगी। ज्यों ही तुम लाओ, उसी क्षण अंधकार मिट जाता है। जिस जगह भी टॉर्च को एकाग्र करते हो, उसे तुम जान लेते हो। कम से कम वह एक जगह स्पष्ट हो जाती है-स्वयं-सिद्ध स्वप्न से स्पष्ट। __ मन के पास क्षमता है प्रमाण की, सम्यक ज्ञान की, प्रज्ञा की। एक बार तुम जान लो कि इसे कैसे प्रयुक्त करना है, तब तुम कहीं भी इसका प्रकाश भेजो, सम्यक ज्ञान ही उदघाटित होगा। और इस क्षमता का उपयोग कैसे किया जाता है इसे जाने बिना, जो कुछ भी तुम जानते हो, वह गलत ही होगा। मन की क्षमता है-असत ज्ञान की भी। संस्कृत में गलत ज्ञान को 'विपर्यय' कहा गया है। वह झूठा है, मिथ्या है। तुम्हारी वह भी क्षमता है। तुम नशा करते हो, और क्या हो जाता है? सारा संसार विपर्यय बन जाता है, सारा संसार मिथ्या हो जाता है। तुम उन चीजों को देखने लगते हो, जो वहाँ हैं नही। क्या हो जाता है? अल्कोहल चीजों का निर्माण नहीं कर सकता है। अल्कोहल तुम्हारे शरीर और मस्तिष्क के साथ कुछ कर रहा है। नशा उस केंद्र को उत्तेजित कर देता है जिसे पतंजलि विपर्यय
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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