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________________ कैसे वे करने दे सकते हैं तुम्हें प्रेम? वे तुम्हारे विवाह का इंतजाम कर देंगे। वह इंतजाम उनका ही होगा। तब तुम जीयोगे उस परिवार के एक हिस्से के रूप में। मुल्ला नसरुद्दीन एक सी के प्रेम में पड़ गया। वह बहुत खुश-खुश घर आया, और जब परिवार के लोग रात्रि का भोजन ले रहे थे, वह कहने लगा उनसे, 'मैंने तय कर लिया है।' पिता तुरंत बोले, 'यह संभव नहीं। यह तो असंभव है। मै ऐसा नहीं होने दे सकता क्योंकि लड़की के परिवार ने उसके लिए एक पैसा भी नहीं छोड़ा है। वह दिवालिया है। बेहतर लड़कियां मिल रही है बेहतर दहेज के साथ। नासमझ मत बन।' मां बोली, 'वह लड़की? हम कभी सोच भी न सकते थे कि तुम इतने नासमझ हो सकते हो। वह ऊटपटांग उपन्यासों को पढ़ने के सिवाय कभी कुछ नहीं करती। वह किसी काम की नहीं। वह खाना नहीं पका सकती, वह घर साफ नहीं कर सकती। जरा देखो तो कितने गंदे घर में वह रहती और इसी भांति और आगे बातचीत चलती गयी। अपनी-अपनी धारणाओं के अनुसार हर सदख ने उसे अस्वीकार कर दिया। छोटा भाई बोला, 'मैं नहीं सहमत उसकी नाक के कारण। नाक इतनी भददी है।' हर किसी की अपनी राय थी। तब नसरुद्दीन बोला, 'पर उस लड़की के पास एक चीज है जो हमारे पास नहीं है।' वे सब इकठे समवेत स्वरों में ही पूछने लगे, 'क्या है वह?' वह बोला, 'परिवार! उसके पास परिवार नहीं। उसके साथ वह एक सुंदर बात । माता-पिता प्रेम के विरुद्ध होंगे। वे एकदम प्रारंभ से ही तुम्हें प्रशिक्षित करेंगे। ऐसे ढंग से प्रशिक्षित करेंगे तुम्हें कि तुम प्रेम में पड़ो ही मत। क्योंकि प्रेम विपरीत पड़ेगा परिवार के। और समाज कुछ नहीं है सिवाय एक ज्यादा बड़े परिवार के। प्रेम समाज के, सभ्यता के, धर्म के, पंडितपुरोहितों के विपरीत पड़ता है। प्रेम एक ऐसी अंतर्ग्रस्तता है, एक ऐसी समग्र प्रतिबदधता है कि यह हर किसी के विपरीत पड़ता है। और हर किसी की तुमसे अपेक्षाएं जुड़ी है। नहीं, यह बात नहीं होने दी जा सकती। तुम्हें प्रेम न करना सिखाया जाता रहा है। और यही है कठिनाई, यही है अड़चन। यह कठिनाई चली आती है समाज से, संस्कृति से, सभ्यता से-उस सबसे जो कि तुम्हारे आसपास है। लेकिन यही सबसे बड़ी कठिनाई नहीं है। इससे भी बड़ी एक कठिनाई है जो तुमसे ही आती है और वह है कि प्रेम को चाहिए समर्पण। प्रेम की मांग है कि तुम्हें अहंकार गिरा देना चाहिए। और तुम भी प्रेम के विरोध में हो। तुम चाहते हो प्रेम, तुम्हारे अहंकार का ही एक उत्सव बन जाये; तुम चाहोगे प्रेम तुम्हारा अहंकार सजाने का एक आभूषण बन जाये। तुम चाहोगे प्रेम कुते की
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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