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________________ लिए। और क्यों तुम अपनी सारी बीमारियों को इतने प्रेमपूर्वक ढोये फिरते हो? तुम उनकी इतनी फिक्र लेते हो; तुम बचाये रहते हो उस सबको जो गलत है। बचाव पाकर सुरक्षा पाकर, वह नकारात्मक ज्यादा और ज्यादा गहरी जड़ें मजबूत कर लेता है तुममें। एक बार तुम जान लेते हो कि यह तुम्हारी अपनी नकारात्मकता है जो कि समस्या खड़ी करती है, तो यह अपने से गिर जाती है। और जब नकारात्मक मन अपने से गिरता है तो वहां सौंदर्य होता है। यदि तुम उसे गिराने की कोशिश करो तो वह चिपकेगा। क्योंकि उसे गिराने का प्रयास ही बता देता है कि तुम्हारी समझ प्रौढ़ नहीं है। सारे त्याग अप्रौढ़ताएं हैं। तुम उसके लिए पके नहीं, तैयार नहीं हुए। इसीलिए प्रयास की जरूरत है इसे गिराने को। यदि तुम कूड़ा-करकट ढो रहे हो, तो क्या उसे गिरा देने को तुम्हें किसी प्रयास की जरूरत होती है, या मात्र इस समझ की कि यह कूड़ा है? यदि तुम्हें प्रयास चाहिए इसे गिरा देने के लिए, तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम अपनी समझ बढ़ा रहे हो प्रयास सहित । समझ अपने में काफी नहीं है; इसीलिए प्रयास की जरूरत आ पड़ती है। जिन्होंने जाना है, वे सब कहते हैं कि प्रयास की जरूरत है क्योंकि तुम्हारी समझ मौजूद नहीं है। वह एक बौद्धिक चीज रही होगी, लेकिन तुमने वस्तुत: अनुभव नहीं किया है स्थिति को, वरना तो तुम एकदम ही गिरा देते नकारात्मकता को एक सांप गुजर जाता है रास्ते से तो तुम घबड़ाकर एकदम उछल पड़ते हो। उस उछलने में कोई प्रयास नहीं होता। तुम उछलने के लिए निर्णय नहीं लेते, तुम तुम्हारे भीतर कोई तार्किक नियम नहीं बनाते सांप है वहां और जहां कहीं सांप है वहां खतरा है, इसलिए मुझे उछलकर दूर होना ही चाहिए।' तुम कोई धीरे-धीरे बनाया जाने वाला तर्कपूर्ण नियम नहीं बना लेते हो। अरस्तू भी उछलेगा। बाद में वह बना सकता है कोई तर्क-सरणी, बिलकुल अभी, जब सांप होता है वहां, सांप फिक्र नहीं करता तुम्हारे तर्क की। सारी स्थिति इतनी खतरनाक होती है कि यह समझ ही कि वह स्थिति खतरनाक है, काफी होती है। पर नकारात्मक को गिराने के लिए, किसी प्रयास की जरूरत नहीं, मात्र समझ की जरूरत है। तब वास्तविक समस्या उठ खड़ी होती है- विधायक को कैसे गिराये ? और यह इतना सुंदर होता है! और तुम्हारे लिए जिसने कि पार का सत्य जाना नहीं है, यही है प्रसन्नता का चरम बिंदु। यह तुम्हें इतना ज्यादा आनंद देता जान पड़ता है। जरा प्रेम में पड़े प्रेमियों को देखो। उनकी आंखों को देखो। जिस ढंग से वे हाथ में हाथ लिये चलते हैं, वे प्रसन्न होते हैं। उनसे कहना इस विधायक मन को गिरा देने को और वे सोचेंगे, 'क्या तुम पागल हुए हो?' इसी की तो प्रतीक्षा करते रहे है वे और अब यह घटित हुआ। और कोई बुद्ध आते हैं और वे कह देते है, गिरा दो इसे।'
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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