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________________ अत: कोई नहीं जानता कहां से मदद आयेगी। कोई नहीं जानता, क्या है बुरा और क्या है अच्छा? कौन कर सकता है निश्चित? मन दुर्बल है और निस्सहाय है। इसलिए कोई दृष्टिकोण तय मत कर लेना । यही है अर्थ तटस्थ होने का । मन शांत होता है बारी-बारी से श्वास छोड़ने और रोके रखने से भी । पतंजलि देते हैं दूसरे विकल्प भी अगर तुम आनंदित व्यक्ति के साथ प्रसन्न और मैत्रीपूर्ण हो सको, दुखी के प्रति करुणा, पुण्यवान के प्रति मुदिता और पापी के प्रति उपेक्षा रख सको- अगर यह संभव हो तो मन परम मन में रूपांतरित होना शुरू हो गया है। यदि तुम ऐसा नहीं कर सकते और यह कठिन है, सरल नहीं है तो दूसरे मार्ग हैं। निराश मत होना। पतंजलि कहते हैं, 'बारी-बारी से श्वास छोड़ने और रोके रखने द्वारा भी मन शांत होता है।' तब तुम शरीर वितान के द्वारा प्रवेश करते हो। पहली बात है मन के द्वारा प्रवेश, दूसरी बात है शरीर विज्ञान के द्वारा प्रवेश श्वास और विचार गहरे रूप से संबंधित हैं, जैसे कि वे एक ही चीज के दो छोर हो। यदि तुम थोड़ा भी ध्यान देते हो तो कई बार तुम भी जान लेते हो कि जब कभी मन परिवर्तित होता है, श्वास परिवर्तित हो जाती है। उदाहरण के लिए, तुम क्रोधित हो तुरत श्वसन क्रिया - बदल जाती है; लय जा चुकी । श्वास की अलग गुणवत्ता है। यह लयबद्ध नहीं है। जब तुम भावातिरेक में होते, कामातुर होते हो, जब कामवासना वशीभूत कर लेती है, तब श्वसन क्रिया बदल जाती है। यह उत्तेजित हो जाती है, विक्षिप्त जब तुम मौन होते हो, कुछ नहीं कर रहे होते, बिलकुल विश्राम अनुभव कर रहे होते हो, तो श्वास की अलग ही लय होती है। यदि तुम गहराई से ध्यान दो, तुम जान सकते हो किस प्रकार की श्वास-लय किस प्रकार के मन को निर्मित करती है। यदि तुम मैत्रीपूर्ण अनुभव करते हो, तो श्वसन क्रिया अलग होती है। यदि तुम प्रतिकूल, क्रोधित, अनुभव करते हो तो श्वास क्रिया अलग होती है इसलिए या तो मन को बदलो और श्वास-क्रिया बदल जायेगी, या तुम इसके विपरीत कर सकते हो - श्वास- क्रिया बदलो और मन बदल जायेगा। श्वास की लय बदलो, और मन तुरंत बदल जायेगा । जब तुम अनुभव करते हो प्रसन्न, मौन, आह्लादित, तो श्वास की लय को ध्यान में रखना । अगली बार जब क्रोध आये तो श्वास को बदलने मत देना। जब तुम प्रसन्न होते हो तो जो लय होती है उसी लय को बनाये रखना। तब क्रोध संभव नहीं होता क्योंकि श्वास-क्रिया स्थिति का निर्माण कर देती है। श्वास- क्रिया नियंत्रित करती है शरीर की उन पंथियों को जो रक्त में रसायन छोड़ती हैं।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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