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________________ केवल स्थान की दूरी ही नहीं, समय से भी कुछ अन्तर नहीं पड़ता। गुरु का शरीर न रहे, लेकिन तुम्हारा सम्पर्क तब भी बना रहता है। उसने अपना भौतिक शरीर त्याग दिया हो लेकिन तुम्हारा सम्पर्क बना रहता है। यदि श्रद्धा घटित होती है तो समय और स्थान दोनों का अतिक्रमण हो जाता श्रद्धा ही वह चमत्कार है। यदि श्रद्धा है तो बिलकुल अभी तुम्हारी निकटता बन सकती है मोहम्मद, जीसस या बुद्ध के साथ। लेकिन यह कठिन है। यह कठिन है क्योंकि तुम जानते नहीं कि श्रद्धा कैसे की जाये। तुम एक जीवित व्यक्ति पर भरोसा नहीं कर सकते तो एक मृत व्यक्ति पर भरोसा कैसे कर सकते हो? लेकिन यदि श्रद्धा घटित हो, तो तुम इस क्षण भी बुद्ध के निकट हो सकते हो। और उनके लिए बुद्ध जीवित हैं, जिनकी उनमें आस्था है। कोई गुरु कभी मरता नहीं उनके लिए जो श्रद्धा कर सकते हैं। वह मदद करता रहता है। वह हमेशा यहां ही है। लेकिन तुम्हारे लिए बुद्ध यहां शारीरिक स्वप्न में भी मौजूद हों,यदि तुम्हारे आगे या पीछे ही खड़े हों, या तुम्हारे साथ ही बैठे हों, तुम उनके निकट न होओगे। तुम्हारे और बुद्ध के बीच एक बड़ी दूरी बनी रहेगी। प्रेम, श्रद्धा और आस्था स्थान और समय दोनों को मिटा देती हैं। आरंभ में क्योंकि तुम दूसरी कोई भाषा नहीं समझ सकते हो, शारीरिक निकटता आवश्यक है लेकिन केवल आरंभ में ही। एक घडी आयेगी जब गुरु स्वयं तुम्हें दूर जाने के लिए विवश कर देगा क्योंकि वह भी आवश्यक हो जाता है। वरना हो सकता है तुम शारीरिक भाषा के साथ ही चिपटे रहना शुरू कर दो। गुरजिएफ जिंदगी भर, लगभग हमेशा ही अपने शिष्यों को बाहर दूर भेजता रहा। वह उनके लिए इतनी दुखद स्थितियां निर्मित करता कि उन्हें जाना ही पड़ता। उसके साथ रहना असंभव हो जाता। एक निश्चित स्थिति तक पहुंचने के बाद चले जाने में वह उनकी मदद करता। वह वास्तव में उन्हें जाने के लिए विवश कर देता। क्योंकि शारीरिक स्वप्न पर किसी को बहुत निर्भर नहीं रहना चाहिए। वह दूसरी उच्चतर भाषा विकसित होनी ही चाहिए। तुम जहां भी हो, गुरु के निकट होने की अनुभूति पानी आरंभ करनी होगी क्योंकि शरीर का अतिक्रमण करना ही है। केवल तुम्हारे शरीर का ही नहीं, गुरु के शरीर का भी अतिक्रमण करना है। लेकिन आरंभ में शारीरिक निकटता से बड़ी मदद मिलती है। एक बार बीज बो दिये जाते हैं, एक बार वे जड़ें पकड़ लेते हैं, तुम काफी मजबूत हो जाते हो, तब तुम दूर जा सकते हो और तब भी तुम गुरु को अनुभव कर सकते हो। यदि दूर चले जाने भर से संपर्क खो जाता है, तब वह संपर्क बहुत महत्वपूर्ण न था। जितना दूर तुम जाते हो, भरोसा और अधिक बढ़ेगा। क्योंकि इस पृथ्वी पर तुम चाहे जहां कहीं हो गुरु की उपस्थिति का निरंतर अनुभव करोगे। भरोसा बढ़ेगा। गुरु अब छिपे हुए हाथों से,अदृश्य हाथों से तुम्हारी मदद कर रहा होगा। वह सपनों द्वारा तुम पर कार्य कर रहा होगा और तुम निरंतर अनुभव करोगे कि वह परछाईं की भांति तुम्हारा पीछा कर रहा है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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