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________________ उनका साथ खोजो जो तुमसे ज्यादा ऊंचे हों-विवेक में ऊंचे, प्रसन्नता में ऊंचे, शांति में, मौन में, एकजुट होने में हमेशा ज्यादा ऊंचे का साथ खोज लेना क्योंकि उसी तरह ही तुम ज्यादा ऊंचे हो सकते हो। तुम घाटियों के पार हो सकते हो और ऊंचे शिखरों तक पहुंच सकते हो। यह बात सीढ़ी बन जाती है। सदा ज्यादा ऊंचे का साथ खोज लेना, सुंदर का, प्रसन्न का साथ। जब तुम ज्यादा सुंदर हो जाओगे; तुम ज्यादा प्रसन्न हो जाओगे । और एक बार रहस्य जान लिया जाता है, एक बार तुम जान लेते हो कि कैसे कोई ज्यादा प्रसन्न होता है, कि कैसे तुम दूसरों की प्रसन्नता के साथ अपने लिए भी प्रसन्न होने की स्थिति निर्मित कर सकते हो, फिर कोई अड़चन नहीं रहती । तब तुम जितना चाहो उतना आगे बढ़ सकते हो तुम हो सकते हो भगवान जिसके लिए कोई अप्रसन्नता अस्तित्व ही नहीं रखती। कौन होता है भगवान? वह होता है भगवान जिसने कि जान लिया है यह रहस्य, कि संपूर्ण विश्व के साथ, प्रत्येक फूल के साथ और प्रत्येक नदी के साथ और प्रत्येक चट्टान के साथ और प्रत्येक तारे के साथ किस प्रकार प्रसन्न रहना है। वह जो इस सतत चिरंतन उत्सव के साथ एक हो गया है, जो उत्सव मनाता है, जो चिंता में नहीं पड़ता कि यह किसका उत्सव है; जहां कहीं होता है उत्सव, वह भाग लेता है। प्रसन्नता में भाग लेने की यह कला बुनियादी बातों में से एक बात है-यदि तुम प्रसन्न होना चाहते हो तो इसी का अनुसरण करना है। तुम बिलकुल विपरीत बात करते रहे हो। यदि कोई प्रसन्न होता है, तो तुरंत तुम्हें झटका लगता है कि यह कैसे संभव है? कैसे हुआ कि तुम प्रसन्न नहीं हो और वह प्रसन्न हो गया है? यह तो अन्याय हुआ। यह सारा संसार तुम्हें धोखा दे रहा है और परमात्मा कहीं है नहीं। यदि परमात्मा है तो यह कैसे हुआ कि तुम अप्रसन्न हो और दूसरे प्रसन्न हुए जा रहे है? और ये व्यक्ति जो प्रसन्न हैं, वे शोषक हैं, चालाक है, धूर्त हैं। वे तुम्हारे रक्त पर पलते हैं। वे दूसरों की प्रसन्नता चूस रहे है। कोई किसी की प्रसन्नता नहीं चूस रहा है प्रसन्नता एक ऐसी घटना है कि उसे चूसने की कोई जरूरत नहीं है। यह एक आंतरिक खिलना है; यह बाहर से नहीं आता है। प्रसन्न व्यक्तियों के साथ प्रसन्न होने मात्र से तुम वह स्थिति निर्मित कर लेते हो जिसमें तुम्हारा अपना अंतर्पुष्प खिलने लगता है। मन शांत होता है मित्रता की मनोवृत्ति का संवर्धन करने से...। पर तुम निर्मित कर लेते हो शत्रुता की मनोवृत्ति । तुम उदास व्यक्ति के साथ मित्रता अनुभव करते हो, और तुम सोचते यह बहुत धार्मिक बात है। तुम उस किसी के साथ मित्रता अनुभव करते हो जो निराश होता है, दुख में होता है। तुम 'सोचते हो यह कोई धार्मिक आचरण है, कोई नैतिकता जिसे तुम संपन्न कर रहे हो। लेकिन तुम क्या कर रहे हो, तुम्हें पता नहीं। और
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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