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________________ ही अलग, अपने अस्तित्व में अलग। जब तुम तंत्र का अनुसरण करते हो, तो तुम यौन के द्वार से आगे बढ़ते हो। वह है तंत्र का मार्ग। तुम प्रकृति का समग्र समर्पण होने देते हो। यह होने देना है। तुम लड़ाई नहीं करते; यह एक योद्धा का मार्ग नहीं है। तुम संघर्ष नहीं करते; तुम समर्पण करते हो, भले ही प्रकृति तुम्हें कहीं भी ले जाये। यदि प्रकृति काम-भाव में ले जाती है, तुम काम-भाव को समर्पण कर देते हो। तुम संपूर्णतया इसमें उतरते हो बिना किसी अपराध-भाव के, बिना पाप की किसी धारणा के। तंत्र के पास पाप की धारणा नहीं, कोई अपराध-भाव नहीं। तो कामवासना में उतरते हो। मात्र सचेत बने रहो, जो घट रहा है उसके प्रति जागरूक बने रहो। सचेत, जो हो रहा है उसके प्रति सावधान। लेकिन उसे नियंत्रित करने का प्रयत्न मत करना;स्वयं को रोकने की कोशिश मत करना। प्रवाह को चले आने दो। सी में गति करो और सी को गति करने दो तुम्हारे भीतर; उन्हें एक वर्तुल बनने दो। और तुम साक्षी बने रहो। इसी देखने और होने देने द्वारा, तंत्र रूपांतरण को प्राप्त कर लेता है। कामवासना तिरोहित हो जाती है। यह एक तरीका है प्रकृति के पार जाने का क्योंकि कामवासना के पार जाना प्रकृति के पार जाना है। सारी प्रकृति कामयुक्त है। फूल हैं क्योंकि वे कामभावमय है। समस्त सौंदर्य विद्यमान है किसी कामभाव की घटना के कारण। एक निरंतर खेल चल रहा है। पेडू एक-दूसरों को आकर्षित कर रहे है, पक्षी एक-दूसरे को पुकार रहे हैं। हर कहीं कामक्रीड़ा चल रही है। प्रकृति काम है, और पुरुषसी के वर्तुल को पाना काम के पार जाना है। लेकिन तंत्र कहता है काम का उपयोग सीढ़ी की भांति करो। उसके साथ संघर्ष मत करो। उसका उपयोग करो और उससे बाहर हो जाओ। उसमें से आगे बढ़ो,उसमें से गुजरो, और अनुभव द्वारा रूपांतरण को उपलब्ध हो जाओ। ध्यानपूर्ण अनुभव रूपांतरण बन जाता है। योग कहता है ऊर्जा व्यर्थ मत गंवाना। काम से पूर्णतया दूर हट कर बाहर निकल जाना। इसमें जाने की कोई जरूरत नहीं। तुम एकदम इससे कतरा कर निकल सकते हो। ऊर्जा को सुरक्षित रखो, और प्रकृति के धोखे में मत आओ। प्रकृति के साथ संघर्ष करो। संकल्पशक्ति ही बन आओ। नियंत्रित जीव हो जाओ जो कहीं नहीं बह रहा। योग की सारी विधियां इसलिए है कि तुम्हें ऐसा बनाया जाये जिससे कि प्रकृति में बहने की जरूरत न हो। योग कहता है प्रकृति को अपने रास्ते जाने देने की कोई जरूरत नहीं। तुम इसके मालिक हो जाओ और तुम अपने से चलो-प्रकृति के विरुद्ध। यह योद्धा का मार्ग है- 'निर्दोष योद्धा'जो लगातार लड़ता है, और लड़ने द्वारा वह रूपांतरित होता
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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