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________________ साथ प्रयोग कर रहे थे। अब मन को जुड्ने दो इसके साथ। फिर तीन महीने के लिए अब मन को संपृक्त होने दो इस नाद से। उतना ही समय मन लेगा जितना शरीर दवारा लिया जाता रहा। यदि तुम शरीर सहित एक महीने के भीतर आपूरण प्राप्त कर सकते हो, तो तुम मन सहित भी एक महीने के भीतर प्राप्त कर लोगे। यदि तुम शरीर द्वारा सात महीनों में प्राप्त कर सकते हो, तो सात महीने ही लगेंगे मन दवारा, क्योंकि शरीर और मन ठीक-ठीक दो नहीं हैं बल्कि वे हैं एक मनोशारीरिक,साइकोसोमैटिक घटना। एक भाग है शरीर, दूसरा भाग है मन। शरीर है प्रकट मन, मन है अप्रकट शरीर। अत: दूसरे हिस्से को, तुम्हारे अस्तित्व के सूक्ष्म हिस्से को आपूरित होने दो। भीतर ओम् को जोर से दोहराओ। जब मन परिपूर्ण होता है, और भी शक्ति खुलती है तुम्हारे भीतर। पहली अवस्था के साथ कामवासना तिरोहित हो जायेगी। दूसरी के साथ,प्रेम तिरोहित हो जायेगा। वह प्रेम जो तुम जानते हो। वह प्रेम नहीं जिसे बुद्ध जानते हैं, सिर्फ तुम्हारा प्रेम तिरोहित हो जायेगा। कामवासना दैहिक अंश है प्रेम का और प्रेम है कामवासना का मानसिक अंश। जब प्रेम तिरोहित होता है, तब और भी खतरा है। तुम बहुत-बहुत घातक होते हो दूसरों के प्रति। यदि तुम कुछ कहते तो वह तुरंत घट जायेगा। इसीलिए दूसरी अवस्था के लिए समग्र मौन लक्षित किया गया है। जब तुम दूसरी अवस्था में होते हो, संपूर्णतया मौन हो जाओ। और प्रवृत्ति होगी शक्ति का प्रयोग करने की, क्योंकि तुम बहुत जिज्ञासु होओगे इसके प्रति। बचकाने भाव से भरे हुए होओगे। और तुम्हारे पास इतनी ज्यादा ऊर्जा होगी कि तुम जानना चाहोगे कि क्या घट सकता है। पर इसका उपयोग मत करना,और बाल-उत्साह मत बरतना, क्योंकि तीसरा सोपान अभी भी बाकी है और ऊर्जा की आवश्यकता है। इसलिए कामवासना तिरोहित हो जाती है। क्योंकि ऊर्जा को संचित करना होता है। प्रेम तिरोहित हो जाता है, क्योंकि ऊर्जा को संचित करना होता है। अत: तीसरा सोपान मन को आपूरित अनुभव करने के बाद आता है। और तुम इसे जान लोगे जब यह घटता है; पूछने की जरूरत नहीं है कि कोई इसे कैसे अनुभव करेगा? यह है भोजन करने की भांति। तुम अनुभव करते हो कि 'अब पर्याप्त है।' मन अनुभव कर लेगा जब यह पर्याप्त होता है। तब तुम तीसरे चरण का प्रारंभ कर सकते हो। तीसरे में, न तो शरीर का और न ही मन का उपयोग करना होता है। जैसे शरीर को बंद किया, अब तुम मन को बंद कर देते हो। और यह आसान होता है। जब तुम तीन या चार महीनों से जप कर रहे होते हो, तो यह बहुत आसान होता है। तुम शरीर को ही बंद कर दो, और तुम सुनोगे तुम्हारे अपने अंतरतम से तुम तक आते हुए उस नाद को। ओम् होगा वहां जैसे कि कोई और जप कर रहा है और तुम मात्र सुनने वाले हो। यह होता है तीसरा चरण। और यह तीसरा चरण तुम्हारे समग्र अस्तित्व को बदल देगा।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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