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________________ पर, दूसरे पर, फिर पहले पर। यह एक आंतरिक वर्तुल बन जाती है और यह दूसरे केंद्रों से गुजरती ऊर्जा संचित हो जाती है इसीलिए यह ऊंची उठती है-ऊर्जा का स्तर ऊंचा होता चला जाता है। यह किसी बांध की भांति होता है। पानी नदी से आता जाता है, और बांध इसे बाहर नहीं जाने देता। तब पानी ऊंचा उठता है। और दूसरे केंद्र, तुम्हारे शरीर के दूसरे चक्र, खुलने शुरू हो जाते हैं। क्योंकि जब ऊर्जा बहती है तो वे केंद्र सक्रिय शक्तियां बन जाते हैं-डायनामो। वे क्रियान्वित होने लगते हैं। यह ऐसा है जैसे कि झरना और डायनामो कार्य करने लगे। जब झरना सूखा होता है, डायनामो नहीं शुरू हो सकता। जब ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है, तुम्हारे उच्चतम चक्र कार्य करने लगते है, क्रियान्वित होने लगते हैं। इसी प्रकार ही मदद देता है ओम्। यह तुम्हें एक कर देता है, शांत बना देता है, प्रकृतिस्थ। ऊर्जा ऊंची उठती है; विषयासक्ति तिरोहित हो जाती है। कामवासना अर्थहीन हो जाती है, बचकानी हो जाती है। यह अभी गयी नहीं लेकिन यह बचकानी बात लगने लगती है। तब तुम विषयासक्त हुआ अनुभव नहीं करते; तुममें इसके लिए कोई ललक नहीं होती। यह अभी भी है वहां। यदि तुम सावधान नहीं होते तो यह तुम्हें फिर से जकडु लेगी। तुम गिर सकते हो क्योंकि यही परम घटना नहीं है। तुम अभी केन्द्रीभूत नहीं हुए हो, लेकिन झलक घट चुकी है और अब तुम जानते हो कि ऊर्जा तुम्हें आंतरिक आनंदपूर्ण अवस्था दे सकती है और कामवासना निम्नतम आनंदोल्लास है। उच्चतर आनंद संभव है। जब उच्चतर संभव हो जाता है, तो निम्न अपने आप ही तिरोहित हो जाता है। तुम्हें उसे त्यागने की आवश्यकता नहीं पड़ती। यदि तुम त्यागते हो, तो तुम्हारी ऊर्जा ऊंची नहीं बढ़ रही। यदि ऊर्जा ऊंची बढ़ रही है, तो कोई जरूरत ही नहीं होती त्यागने की। यह बिलकुल व्यर्थ हो जाती है। यह एकदम स्वयं ही गिर जाती है। यह निष्क्रिय हो जाती है। यह एक श्रम होती है। जैसे कि तुम हो, यदि तुम सपने देखना बंद कर दो तो मनोविश्लेषक कहते कि तब तुम पागल हो जाओगे। सपनों की आवश्यकता होती है। भ्रांतियों की, भ्रामकताओं की, धर्मों की, सपनों की जरूरत है क्योंकि तुम हो। और नींद में, सपने एक आवश्यकता हैं। वे अमरीका में प्रयोग करते रहे हैं और उन्होंने पाया है कि यदि तुम्हें सात दिन तक सपने न देखने दिये जायें तो तुम तुरंत श्रम पूर्ण यात्रा शुरू कर देते हो। जो चीजें हैं ही नहीं वे तुम्हें दिखाई पड़ने लगती हैं। तुम पागल हो जाते हो। बस सात दिन गुजरते हैं बिना सपनों के, और तुम भ्रमित हो जाते हो। भ्रांतियां घटित होने लगती हैं। तुम्हारे सपने एक रेचन हैं; एक अंतर्निर्मित रेचन। तो हर रात तुम स्वयं को बहका लेते हो। सुबह होने तक तुम कुछ शांत हो जाते हो, लेकिन शाम तक फिर तुमने बहुत ऊर्जा एकत्रित कर ली होती है। रात को तुम्हें सपने देखने ही होते हैं और इस ऊर्जा को बाहर फेंकना ही पड़ता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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