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________________ परोसा फिर से आ बसता है। तुम फिर से एक बालक हो आंतरिक संसार के। यह एक नया जन्म होता है। तुम फिर से हंस सकते हो, खेल सकते हो। फिर से हुआ है तुम्हारा जन्म। इसे हिंदू कहते हैं द्विजन्मा-विज। यह है अगला जन्म, दूसरा जन्म। एक बाहरी संसार में हुआ था, वह असफल सिद्ध हुआ; इसीलिए तुम इतना निर्जीव अनुभव करते हो। और जब तक कोई चालीस की उम्र तक पहुंचता है, मृत्यु की सोचने लगता है-कैसे मरूं, कैसे समाप्त होऊं, इसकी सोचने लगता है। यदि लोग आत्महत्या नहीं करते, तो ऐसा नहीं है कि वे खुश हैं। ऐसा मात्र इसीलिए है कि वे मृत्यु में भी कोई आशा नहीं देखते। मृत्यु भी आशारहित जान पड़ती है। वे आत्महत्या नहीं कर रहे तो इसलिए नहीं कि वे बड़ा प्रेम करते हैं जीवन से-नहीं। वे इतने हताश है कि वे जानते है मृत्य भी कोई चीज देने वाली नहीं। तो क्यों अनावश्यक तौर से ही आत्महत्या करें? क्यों मुसीबत उठायें? तो जैसा है, जो है चलाते चलो। 'विषयासक्ति'; क्यों तुम अनुभव करते हो विषयासक्त, कामुक? तुम कामयुक्त अनुभव करते हो क्योंकि तुम संचित कर लेते हो ऊर्जा, अप्रयुक्त ऊर्जा; और तुम जानते नहीं कि क्या करना है उसका। अत: स्वभावतया काम के पहले केंद्र पर वह इकट्ठी हो जाती है। और तुम्हें किन्हीं दूसरे केंद्रों का पता नहीं है। और कैसे ऊर्जा ऊपर की ओर बहती है यह तुम जानते नहीं। यह ऐसा है कि जैसे तुम्हारे पास हवाई जहाज है, लेकिन तुम जानते नहीं कि यह है क्या। इसलिए तुम उसकी जांच करते हो। फिर तुम सोचते हो, 'इसके पहिये है, तो यह किसी प्रकार का वाहन ही होगा।' तब तुम उसके साथ घोड़े जोत देते हो और उसका प्रयोग करते हो बैलगाड़ी की भांति। इसका प्रयोग हो सकता है इस ढंग से। फिर किसी दिन संयोगवशात, तुम खोज लेते हो कि बैलों की जरूरत नहीं। इसमें इसका एक अपना इंजन है, तो तुम इसका प्रयोग कर लेते हो मोटरकार के रूप में। फिर तुम तुम्हारी खोज में गहरे और गहरे उतरते जाते हो। फिर तुम्हें आश्रर्य होता कि ये पंख हैं क्यों? फिर एक दिन तम इसका प्रयोग वैसे ही करते हो जैसे कि इसका प्रयोग किया जाना चाहिए-हवाई जहाज की भांति ही। जब तम भीतर उतरते हो, तो तुम बहत चीजें खोज लेते हो। लेकिन यदि तुम नहीं उतरते, तो वहां केवल व , तो वहां केवल कामवासना ही होती है। तम ऊर्जा इकटठी कर लेते हो, फिर तम नहीं जानते कि उसका करना क्या है। तुम बिलकुल ही नहीं जानते कि तुम ऊपर की ओर उड़ान भर सकते हो। तुम एक धक्का, एक बैलगाड़ी बन जाते हों-कामवासना धक्के की भांति व्यवहार कर रही होती है। तुम ऊर्जा एकत्रित कर लेते हो। तुम भोजन करते हो, तुम पानी पीते हो और ऊर्जा निर्मित होती है, ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है। यदि तुम उसका उपयोग नहीं करते तो तुम पागल हो जाओगे। तब ऊर्जा तुम्हारे भीतर तीव्रता से घूमती है। यह तुम्हें पगला देती है। तुम्हें कुछ करना ही पड़ता है। यदि
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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