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________________ तब तुम पूछोगे, 'प्रेम कैसे कर सकते हैं?' अगर यह होता है, तो चाहिए और बाद में विवाह होगा। होता है; अगर यह नहीं हो रहा, तो नहीं हो रहा। तुम कुछ नहीं कर सकते। उसी तरह तुम आस्था को जबरदस्ती नहीं लाद सकते। - पुराने समय में खोजी संसार भर में घूमते थे वे एक गुरु से दूसरे गुरु तक घूम लेते थे। एक अद्भुत घटना के घटित होने की प्रतीक्षा करते हुए तुम इसे जबरदस्ती नहीं ला सकते। हो सकता है जब तक तुममें कोई झरोखा खुले, तुम बहुत से गुरुओं के बीच से खोजते हुए गुजरो। तो श्रद्धा कहीं घटित हो चुकी होगी, लेकिन वह शर्त न थी तुम गुरु के पास जाकर उस पर श्रद्धा करने का प्रयत्न नहीं कर सकते। तुम श्रद्धा करने का प्रयत्न कैसे कर सकते हो? वही प्रयत्न, वही प्रयास दर्शाता है कि तुम श्रद्धा नहीं करते। तुम किसी को प्यार करने की कोशिश कैसे कर सकते हो? कैसे कर सकते हो तुम? यदि तुम कोशिश करते हो, तो सारी बात ही झूठी बन जायेगी। यह एक घटना है। लेकिन जब तक यह घटित नहीं होती, सत्संग संभव न हो पायेगा। तब तक गुरु अपनी कृपा तुम्हें नहीं दे सकता। ऐसा नहीं है कि इसे देने से वह स्वयं को रोके रखेगा। लेकिन तुम सुलभ नहीं होते हो उसे ग्रहण करने के लिए। वह कुछ नहीं कर सकता। तुम खुले हुए नहीं हो। हो सकता है सूरज खिड़की के करीब ही प्रतीक्षा कर रहा हो लेकिन यदि खिड़की बंद है, सूर्य क्या कर सकता है? किरणें पीछे लौट आयेंगी। वे आयेगी, द्वार खटखटायेंगी और वापस लौट जायेंगी। ध्यान रखना, यह शर्त नहीं है कि यदि तुम द्वार खोलो, तो सूर्योदय होगा। ऐसी शर्त नहीं है। हो सकता है सूर्य वहां न हो। हो सकता है रात हो । केवल द्वार खोल कर ही तुम सूर्य को निर्मित नहीं कर सकते। तुम्हारा खुलना, तुम्हारा द्वार, बस तुम्हें सुलभ बनाते हैं। यदि सूर्य वहां है, तो वह प्रविष्ट हो सकता है। इसलिए खोजी चलते रहेंगे। उन्हें एक गुरु से दूसरे गुरु तक बढ़ते ही रहना होगा। केवल एक बात जो उन्हें ध्यान में रखनी है वह यह कि उन्हें खुले रहना चाहिए और उन्हें फैसला नहीं देना चाहिए। यदि तुम किसी गुरु के पास आते हो और उसके साथ कोई तालमेल नहीं पाते, तो आगे बढ़ जाओ। लेकिन निर्णय मत दो क्योंकि तुम्हारा मूल्यांकन गलत होगा। तुम उसके संपर्क में कभी नहीं आये। जब तक कि तुम उसे प्रेम न करो, तुम उसे जान नहीं सकते इसलिए निर्णय मत दो। इतना ही कहो, 'यह गुरु मेरे लिए नहीं, मैं इस गुरु के लिए नहीं वह बात घटित हुई नहीं। और बस आगे बढ़ जाओ। यदि तुम निर्णय देना आरंभ करते हो, तब तुम स्वयं को बंद कर लेते हो दूसरे गुरुओं के लिए भी तुम्हें कई-कई स्थितियों में से गुजरना पड़ सकता है, लेकिन इसे ध्यान में रखना निर्णय मत दो। जब कभी तुम्हें लगे कि इस गुरु में कुछ गलत है, आगे बढ़ जाओ। इसका अर्थ है कि तुम :
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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