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________________ जब कभी विद्युत वर्तुल में प्रवाहित नहीं हो रही होती, इन सात सौ बिंदुओं में कुछ अंतराल होते हैं, कुछ बिंदु-स्थल कार्य ही नहीं कर रहे होते, कुछ स्थलों द्वारा विद्युत अब गतिमान नहीं हो रही होती, अवरुद्धता आ जाती है वहां । विद्युत अलग हो जाती है, वर्तुल नहीं रहा यह तब रोग घटता है। अत: अकुपंक्चर पांच हजार वर्षों से विश्वास करता आया है कि बिना किसी इलाज के, यदि तुम प्राण ऊर्जा के प्रवाह को एक वर्तुल बनने दो, तो रोग तिरोहित हो जाता है। अकुपंक्चर लगभग उसी समय के दौरान पैदा हुआ जब पतंजलि जीवित थे। जैसा कि मैंने कहा था तुमसे ढाई हजार वर्षों के बाद मानव चेतना का शिखर आ पहुंचता है। 3 चीन में ऐसा हुआ लाओत्सु और च्चांगत्सु के साथ, कन्फ्यूसियस के समय में भारत में बुद्ध, महावीर तथा औरों के साथ घटा ग्रीस में हेराक्लतु के साथ, ईरान में जरथुस्त्र के साथ, शिखरघटना घटित हुई। जो धर्म तुम अब देखते हो संसार में, वे उत्पन्न हुए मानव-चेतना के उसी महत्वपूर्ण घड़ी में? उस शिखर से हिमालय से सारे धर्मों की सारी नदियां बहती आ रही हैं इन्ही ढाई हजार वर्षों से । इसी प्रकार बुद्ध से ढाई हजार वर्ष पूर्व शिखर घटना घटी थी। पतंजलि, ऋषभ जैनवाद के प्रवर्तक, वेद, उपनिषद, चीन में अकुपंक्चर, भारत में योग और तंत्र, ये सब घटित हुए। एक शिखर, एक ऊंचाई थी। फिर कभी उस शिखर से ऊंचा शिखर नहीं हुआ गया और उसी सुदूर अतीत द्वारा, पांच हजार वर्ष पहले, योग, तंत्र अकुपंक्चर बहते रहे हैं नदियों की भांति । एक निश्रित घटना है जिसे जुंग ने कहा है 'सिंक्रानिसिटी समकालिकता। जब कोई निश्रित सिद्धांत जन्म लेता है, केवल एक व्यक्ति ही उसके प्रति सजग नहीं होता, बल्कि पृथ्वी पर से हो जाते हैं सचेत जैसे कि सारी पृथ्वी तैयार होती है इसे ग्रहण करने को सुना जाता है कि आइंस्टीन ने कहा था, यदि मैंने सापेक्षता का सिद्धांत न खोजा होता, तो एक वर्ष के भीतर ही किसी और ने इसे खोज लिया होता। क्यों? क्योंकि सारी पृथ्वी पर बहुत लोग इसी दिशा में कार्य कर रहे थे। जब डार्विन ने क्रम विकास का सिद्धांत खोजा, कि आदमी बंदरों द्वारा विकसित हुआ है, कि निरंतर संघर्ष होता है योग्यतम के जीवित रहने के लिए, एक दूसरा व्यक्ति- वैलेस रसेल उसने इसे खोज लिया था। वह फिलिपाइन्स में था, और दोनों मित्र थे। लेकिन बहुत वर्षों से एक-दूसरे की खास खबर न थी। डार्विन लगातार बीस वर्षों तक काम करता रहा था, लेकिन वह एक सुस्त किस्म का आदमी था। उसके पास बहुत सारे अंश थे और हर चीज तैयार थी, लेकिन वह इनके द्वारा पुस्तक तैयार नहीं करता था और उन दिनों की साइंटिफिक सोसाइटी के सामने वह इसे प्रस्तुत नहीं करता । था। मित्र फिर-फिर अनुरोध करते, करो यह काम वरना और कोई कर लेगा इसे और तब एक दिन फिलिपाइन्स से एक पत्र आया और सारा सिद्धांत उस पत्र में रसेल द्वारा प्रस्तुत कर दिया
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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