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________________ रोग, निर्जीवता, संशय (संदेह), प्रमाद, आलस्य, विषयासक्ति, भांति, दुर्बलता और अस्थिरता वे हैं जो मन में विक्षेप लाती हैं दुःखदौर्मनस्थांगमेजयत्वश्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभवः।। 31।। दुख, निराशा, कंपकंपी और अनियमित श्वसन विक्षेपयुक्त मन के लक्षण हैं। तअतिषेधार्थमेकतत्वाथ्यास:।। ३२|| इन बाधाओ को दूर करने के लिए एक तत्व पर ध्यान करना। पतंजलि विश्वास करते है-और केवल विश्वास ही नहीं करते, वे जानते भी है-कि ध्वनि अस्तित्व का आधारभूत तत्व है। जिस प्रकार भौतिकीविद कहते हैं कि विदयुत है आधारभूत तत्व, योगी कहते हैं कि ध्वनि है, नाद है आधारभूत तत्व। सूक्ष्म तौर पर वे परस्पर सहमत होते हैं। भौतिकीविद कहते हैं, ध्वनि और कुछ नहीं है सिवाय विद्युत के रूपांतरण के। और योगी कहते हैं कि विद्युत कुछ नहीं है सिवाय ध्वनि के रूपांतरण के। दोनों सही हैं। ध्वनि और विद्युत एक ही घटना के दो रूप हैं। और मेरे देखे, वह घटना अभी तक जानी नहीं गयी है और कभी जानी जायेगी नहीं। जो कुछ भी हम जानते हैं, इसका रूपांतरण मात्र ही होगा। चाहे तुम इसे विद्युत कह लो, चाहे तुम इसे ध्वनि कह लो। हेराक्लत् की भांति तुम कह सकते हो इसे अग्रि; तुम इसे लाओत्स् की भांति कह सकते हो पानी। वह तुम पर निर्भर करता है। लेकिन ये सब रूपांतरण ही हैं-अरूप के रूप हैं। वह अरूप, वह निराकार सदा अज्ञात ही बना रहेगा। __ कैसे तुम जान सकते हो निराकार को? ज्ञान सम्भव होता है केवल जब एक रूप या आकार होता है। जब कोई चीज प्रकट हो जाती है, तब तुम जान सकते हो उसे। तुम अप्रकट को, अदृश्य को ज्ञान का विषय कैसे बना सकते हो? अदृश्यता का पूरा स्वभाव ही यही है कि इसे विषयगत नहीं बनाया जा सकता। जहां यह होता है, जो यह होता है, तुम इसका ठीक-ठीक पता नहीं लगा सकते। केवल कोई प्रकट हई चीज एक विषय बन सकती है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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