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________________ अस्तित्व नहीं रखता था। मैं रेस्तराओं में घूमता-फिरता रहता और बाहर चला आता। कोई नहीं, बैरे तक मेरी ओर ध्यान नहीं देते थे।' फिर राजाओं की तो बात ही क्या? उन्हें पता ही नहीं था कि वोलेयर विदयमान था। फिर मैं प्रसिद्ध हो गया', लिखता है वह, 'तब सड़कों पर घूमना ८१3एन हो गया था क्योंकि लोग इकट्ठे हो जाते। कहीं भी जाना कठिन था। कठिन था रेस्तरां में जाना, और आराम से खाना खा लेना। भीड़ इकट्ठी हो जाती।' एक घड़ी आयी जब उसके लिए घर से बाहर निकलना लगभग असंभव हो गया क्योंकि उन दिनों पेरिस में, फ्रांस में एक अंधविश्वास चलता था कि यदि तुम किसी बहुत प्रसिद्ध व्यक्ति के कपड़े का टुकड़ा ले सको और उसका लॉकिट बना लो, तो यह अच्छी किस्मत होती थी। तो जहां-कहीं से वह चला जाता, वह लौटता वस्रविहीन होकर क्योंकि लोग उसके कपड़े फाड़ देते! और वे उसके शरीर को भी हानि पहुंचा देते। जब वह कहीं जाता या किसी दूसरे शहर से वापस लौटता पेरिस, पुलिस की जरूरत पड़ती उसे घर वापस लाने को। अत: वह प्रार्थना किया करता था, 'मैं गलत था। बस मुझे फिर से ना-कुछ बना दो, क्योंकि मैं जा नहीं सकता और नदी को देख नहीं सकता। मैं बाहर नहीं जा सकता और सूर्योदय नहीं देख सकता। मैं पहाड़ों पर नहीं जा सकता; मैं घम-फिर नहीं सकता। मैं एक कैदी बन गया है। जो प्रसिद्ध हैं वे हमेशा कैदी ही होते हैं। शरीर को जरूरत नहीं है प्रसिद्ध होने की। शरीर इतनी पूरी तरह से ठीक है,उसे इस प्रकार की किन्हीं निरर्थक चीजों की जरूरत नहीं होती है। उसे भोजन जैसी सीधी-सादी चीजों की आवश्यकता होती है। उसे जरूरत होती है पीने के पानी की। इसे मकान की जरूरत होती है जब बाहर बहुत ज्यादा गरमी होती है। इसकी जरूरतें बहुत,बहुत सीधी होती हैं। संसार पागल है इच्छाओं के कारण ही, आवश्यकताओं के कारण नहीं। और लोग पागल हो जाते हैं। वे अपनी आवश्यकताएं काटते चले जाते हैं, और अपनी इच्छाएं उपजाये और बढ़ाये चले जाते हैं। ऐसे लोग हैं जो हर दिन का, एक समय का भोजन छोड़ देना पसंद करेंगे, पर वे अपना अखबार नहीं छोड़ सकते। सिनेमा देखने जाना नहीं बंद कर सकते; वे सिगरेट पीना नहीं छोड़ सकते। वे किसी तरह भोजन छोड़ देते हैं। उनकी आवश्यकताएं गिरायी जा सकती हैं, उनकी इच्छाएं नहीं। उनका मन तानाशाह बन चुका है। शरीर हमेशा सुंदर होता है-इसे ध्यान में रखना। यह आधारभूत नियमों में एक है जिसे मैं तुम्हें देता हूं-वह नियम जो बेशर्त रूप से सत्य है, परम रूप से सत्य है, निरपेक्ष रूप से सत्य है-शरीर तो हमेशा सुंदर होता है, मन है असुंदर। वह शरीर नहीं है जिसे कि बदलना है। इसमें बदलने को कुछ
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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