SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 353
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं, वस्तुत: अवस्थाएं नहीं होतीं, लेकिन जब गुरु देह में होता है, और जब गुरु देह छोड़ देता है और देहविहीन हो जाता है, तो इन दो बातों में भेद होता है-लेकिन ये वास्तव में अवस्थाएं नहीं हैं। यह तो ऐसा है जैसे तुम वृक्ष के नीचे सड़क के किनारे खड़े हुए हो-तो तुम देख सकते हो सड़क का एक टुकड़ा, लेकिन तुम उस टुकड़े के पार नहीं देख सकते। फिर तुम वृक्ष पर चढ़ते हो। तम वही रहते हो, तममें या तम्हारी चेतना में कुछ नहीं घट रहा। लेकिन तुम चढ़े हो वृक्ष पर, और वृक्ष से तुम अब मीलों तक इस ओर से देख सकते हो और मीलों तक उस ओर से देख सकते हो। फिर तुम हवाई जहाज में उड़ान भरते हो। कुछ नहीं घटा है, तुममें; तुम्हारी चेतना वैसी ही बनी रहती है। लेकिन अब तुम हजारों मील तक देख सकते हो। देह में तुम सड़क पर हो-सड़क के किनारे होने जैसे हो-देह से सीमित। देह अस्तित्व का निम्नतम बिन्दु है क्योंकि इसका अर्थ होता है पदार्थ के साथ ही प्रतिबद्ध होना। शरीर और पदार्थ है सबसे नीचे का बिन्दु और परमात्मा है उच्चतम बिन्दु। जब कोई गुरु देह में रहते हए सम्बोधि को उपलब्ध होता है, तो देह को परिपूर्ति करनी होती है अपने कर्मों की, पिछले संस्कारों की। हर खाता बन्द करना पड़ता है, केवल तभी देह को छोड़ा जा सकता है। यह इस प्रकार होता है-तुम्हारा हवाई जहाज आ पहुंचा है, लेकिन तुम्हारे पास बहुत सारे काम पड़े हैं समाप्त करने को। सारे लेनदार वहां मौजूद है, और तुम्हारे चले जाने से पहले वे खाता बन्द करने की मांग कर रहे हैं। और लेनदार बहुत हैं, क्योंकि बहुत जन्मों से तुम वचन दे रहे हौ, कई चीजें कर रहे हो-कर्म कर रहे हो और व्यवहार कर रहे हो कई बार अच्छा , कई बार बरा; कई बार पापी की भांति और कई बार संत की भांति। तुमने बहुत कुछ एकत्रित कर लिया है। इससे पहले कि तुम चले जाओ, सारा अस्तित्व मांग करता है कि तुम हर चीज समुर्ण कर दो। जब तुम सम्बोधि प्राप्त कर लेते हो तो तुम जानते हो कि तुम देह नहीं हो, लेकिन तुम देह के और भौतिक संसार की बहुत चीजों के ऋणी होते हो। समय की आवश्यकता होती है। बदध सम्बोधि को उपलब्ध होने के पश्चात चालीस वर्ष तक जीवित रहे, महावीर भी लगभग चालीस वर्ष ही जीवित रहे, चुकाने को ही-वह हर चीज चुका देने को जिसके वह देनदार होते थे;वह हर चक्र पूरा कर देने को जो उन्होंने शुरू किया था। कोई नया कर्म नहीं है, लेकिन पुरानी लटकने वाली चीजें समाप्त करनी ही होती है; पुराना मंडराता हुआ प्रभाव समाप्त करना ही पड़ता है। जब सारे खाते बन्द हो जाते हैं, तो अब तुम तुम्हारे हवाई जहाज पर चढ़ सकते हो। ___ अब तक पदार्थ सहित, तुम क्षैतिजिक गति से बढ़ रहे थे बैलगाड़ी में ही थे जैसे। अब तुम ऊर्ध्व गति से बढ़ सकते हो। अब तुम ऊपर की ओर जा सकते हो। इसके पहले, तुम हमेशा आगे जा रहे थे या पीछे जा रहे थे; कोई ऊर्ध्व गति नहीं थी। परमात्मा या गुरुओं का गुरु वह उच्चतम बिन्दु
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy