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________________ होते और दस पन्नो में भी संदेश पूरा न हो पाता। लेकिन एक तार में, दस शब्दों में वह केवल पूरा ही नहीं होता, वह पूरे से भी अधिक होता है वह हृदय पर चोट करता है सारतम उसमे होता है। टेलीग्राम हैं पतंजलि के ये सूत्र वे कंजूस हैं। वे एक भी फालतू शब्द का उपयोग नहीं करेंगे। तो वे कहानियां कैसे कह सकते हैं? वे कह नहीं सकते, इसलिए कोई आशा मत रखो। तो मत पूछो कि वे आस्तिक हैं या नास्तिक ? ये तो मात्र किस्से-कहानियां हैं। दार्शनिकों ने कितनी पुराण कथाए रची हैं! और यह एक खेल है। यदि तुम्हें नास्तिकवाद का खेल पसंद है तो हो जाओ नास्तिक । यदि तुम्हें आस्तिक वाद का खेल पंसद है, आस्तिक हो जाओ। लेकिन ये सब खेल हैं, सत्य नहीं यथार्थ, वास्तविकता और ही चीज है। वास्तविकता तुमसे सबंध रखती है, उससे नहीं जो कि तुम्हारा विश्वास है। 'तुम' हो वास्तविकता, तुम्हारा विश्वास नही । वास्तविकता मन से परे है, मन की तरंगो में नही। आस्तिकता मन की एक लहर है, नास्तिकता मन की ही एक लहर है। वे मन की ही तरंगे हैं। हिंदुत्व मन की एक धारणा है क्रिश्चयनिटी मन का एक विषय है। पतंजलि की रुचि है 'पार' में मन के खेलों में नहीं वे कहते हैं, फेंक दो पूरे सारे मन को ही इसमें जो है, व्यर्थ है। तुम सुंदर सुंदर दार्शनिक विचारों को ढो रहे हो। लेकिन पतंजलि कहेंगे, फेंको उन्हें, ये सब बकवास हैं। यह कठिन है। यदि कोई कहता है कि तुम्हारी बाइबिल फिजूल है, तुम्हारी गीता फिजूल है, तुम्हारे धार्मिक ग्रंथ फिजूल हैं, बकवास हैं; उन्हें फेंक दो! तुम्हें बहुत धक्का लगेगा। लेकिन यही होने जा रहा है। पतंजलि तुमसे कोई समझौता नहीं करने वाले हैं। वे अडिग अटल हैं। और यही सौंदर्य है, यही उनकी बेजोड़ता है। तीसरा प्रश्न: आपने योग के मार्ग पर शिष्यत्व की सार्थकता के विषय में कहा। एक नास्तिक शिष्य कैसे हो सकता है? न तो आस्तिक शिष्य हो सकता है और नहीं नास्तिक। उन्होंने पहले ही धारणाएं पकड़ी हुई हैं, वे पहले ही निर्णय ले चुके हैं, तो शिष्य होने का क्या प्रश्न रहा? यदि तुम पहले ही जानते हो, तो तुम शिष्य कैसे हो सकते हो? शिष्य होने का अर्थ है यह बोध कि तुम नहीं जानते। न नास्तिक और न आस्तिक, वे शिष्य नहीं हो सकते। यदि तुम किसी धारणा में विश्वास करते हो तो
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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