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________________ पहला प्रश्न: क्या आप किसी गुरुओं के गुरु दवारा निर्देश ग्रहण करते हैं? में किसी प्राचीन मार्ग पर नहीं हं अत: कुछ बातें समझ लेनी हैं। मैं महावीर की भांति नहीं हूं जो चौबीस तीर्थंकरों के लंबे क्रम के अंतिम छोर थे। वे चौबीस थे। अतीत में, पिछले तेईस में से प्रत्येक तीर्थंकर गुरुओं का गुरु हो गया था,भगवान हो गया था, उसी मार्ग पर, उसी विधि से उसी जीवन-क्रम से, उसी उपाय से। प्रथम तीर्थंकर थे ऋषभ और अंतिम थे महावीर। ऋषभ के पास निर्देश लेने को अतीत में कोई न था। मैं महावीर की भांति नहीं, ऋषभ की ही भांति हूं। मैं एक परंपरा का आरंभ हूं अंत नहीं। बहत आ रहे होंगे इसी मार्ग पर। इसलिए मैं निर्देशों के लिए किसी की प्रतीक्षा नहीं कर सकता; ऐसा होना संभव नहीं। एक परंपरा जन्मती है और फिर वह परंपरा मर जाती है, बिलकुल ऐसे ही जैसे व्यक्ति जन्म लेते हैं और मर जाते हैं। मैं आरंभ हूं अंत नहीं। जब कोई श्रृंखला के मध्य में होता है या अंत में होता है, तो वह गुरुओं के मूल गुरु से निर्देश प्राप्त करता है। मैं किसी मार्ग पर नहीं हूं इसका कारण यह है कि मैंने बहुत सारे गुरुओं के साथ कार्य किया है, लेकिन मैं शिष्य कभी नहीं रहा। मैं एक घुमक्कड़, एक यायावर था। बहुत सारी जिंदगियों में से भ्रमण करता रहा, बहुत परंपराओं को आड़े-तिरछे ढंग से पार करता रहा, बहुत समुदायों के साथ, संप्रदायों के साथ, विधियों के साथ रहा लेकिन किसी के साथ संबंधित कभी नहीं हुआ। मुझे प्रेम सहित स्वीकारा गया, लेकिन मैं हिस्सा कभी न बना। ज्यादा से ज्यादा मैं एक मेहमान था, रात भर ठहरने वाला! इसीलिए मैंने इतना ज्यादा सीख लिया। तुम एक मार्ग पर इतना ज्यादा नहीं सीख सकते; यह बात असंभव है। यदि तुम एक मार्ग पर बढ़ते हो, तो तुम उसके बारे में सब कुछ जानते होते हो लेकिन किसी और चीज के बारे में कुछ नहीं जानते। तुम्हारा सारा अस्तित्व इनमें समाविष्ट हो जाता है। मेरा ढंग ऐसा नहीं रहा। मैं एक फूल की भांति एक फूल से दूसरे तक जाता रहा दूं बहुत सुरभियां एकत्रित करता रहा हूं। इसीलिए मैं झेन के साथ एक लय में हूं मोहम्मद के साथ एक लय में हूं जीसस के साथ एक लय में हूं यहदियों के साथ एक लय में हूं पतंजलि के साथ एक लय में हं-भिन्न मार्गों के साथ जो कई बार बिलकुल ही विपरीत होते हैं।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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