SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिन के भीतर तुम सूख कर हड्डियों का ढांचा हो जाओगे, सब संचित चरबी समाप्त हो गयी। तब तुम्हें मरना पड़ता है। शरीर के प्रति हिंसात्माक होना सरल होता है। यह इतना गूंगा है। लेकिन मन के साथ ऐसा करना कठिन है क्योंकि मन बहुत बोलने वाला है। यह सुनेगा नहीं। और वास्तविक बात है मन को आज्ञाकारी बनाना तथा इच्छाओं को काट देना। स्वर्ग और स्वर्गिक परलोक की मत पूछना | जापान के नये धर्मों के बारे में एक पुस्तक मैं इधर पढ़ता था। जैसा कि तुम जानते हो, जापानी तकनीकी तौर पर बहुत निपुण लोग होते है। उन्होंने जापान में दो स्वर्ग निर्मित कर लिये हैं, मात्र तुम्हें झलक दे देने को उन्होंने पहाड़ी स्थान पर एक छोटा स्वर्ग निर्मित कर लिया है रु हे दिखाने के लिए कि वहां वास्तविक स्वर्ग में कैसा क्या है बस तुम चले जाओ और झलक पा लो इतनी सुन्दर जगह उन्होंने बना ली है और वे इसे बिलकुल साफ-सुथरा रखते है वहां फूल ही फूल है और वृक्ष है और रंगछटा है, छाया है, और सुन्दर छोटे बंगले हैं और वे तुम्हें दे देते हैं स्वर्ग की झलक ताकि तुम आकांक्षा करना शुरू कर दो। 1 3 कहीं कोई स्वर्ग नहीं होता है। स्वर्ग मन की निर्मिति है और कोई नरक नहीं है वह भी मन की ही निर्मिति है। नरक और कुछ नहीं है सिवाय स्वर्ग के अभाव के बस इतना ही। पहले तुम इसे रचते हो, और फिर तुम इसे गंवा देते हो क्योंकि यह वहा है नहीं और ये लोग, ये पंडितपुरोहित, विषदायी हैं, वे हमेशा तुम्हें मदद देते हैं इच्छा करने में। पहले वे इच्छा का निर्माण करते हैं। फिर पीछे चला आता है नरक, फिर वे चले आते हैं तुम्हें बचाने को एक बार मैं एक बड़ी कच्ची सड़क पर से गुजर रहा था। गर्मियों के दिन थे और अचानक मैं सड़क के इतने कीचड़ भरे खंड पर आ पहुंचा कि मैं विश्वास नहीं कर सकता था कि कैसे यह सड़क ऐसी बन गयी! बारिश बिलकुल नहीं हुई थी। जमीन का वह टुकड़ा कोई आधा मील लम्बा था, लेकिन मैंने सोचा कि यह बहुत गहरा नहीं हो सकता इसलिए मैं कार चलाता गया। मैं चला गया इसी में, फिर फंस गया। वह केवल कीचड़ से ही नहीं भरा था, उसमें बहुत सारे की किसी के द्वारा मदद पाने की, कोई ट्रक ही आ जाये । हुए थे। फिर मैंने प्रतीक्षा एक किसान ट्रक लिये आ पहुंचा। जब मैंने उसे मेरी मदद करने को कहा, वह बोला, वह बीस रुपये लेगा। तो मैंने कहा, 'ठीक है। तुम ले लो बीस रुपये, पर मुझे इसमें से बाहर तो निकालो। जब मैं बाहर आया, तो मैंने कहा उस किसान से, 'इस कीमत पर तो तुम दिन-रात काम कर रहे होओगे। 'वह बोला, 'नहीं, रात में नहीं। क्योंकि तब मुझे इस सड़क के लिए नदी से पानी लाना है। आप क्या सोचते हैं कि यहां कीचड़ किसने बना दिया? और फिर मुझे थोड़ी नींद भी लेनी पड़ती है क्योकि एकदम सुबह यह व्यापार शुरू हो जाता है।'
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy