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________________ है। इसी प्रकार नये धर्म उत्पन्न होते हैं। यह अनावश्यक है। इसकी कोई जरूरत नहीं होती। लेकिन लोग सुनेंगे नही। वे पूछेगे, 'कहा लिखा है ऐसा?' नहीं लिखा है यह। नयी देशनाएं है ये, एक नया धर्मशास्त्र। और यदि तुम नये शाख को नहीं सुनते, तो नयी देशनाएं नया धर्म बन जायेंगी। और तुम देख सकते हो कि नया धर्म सदा ज्यादा शक्ति शाली लगता है पुराने से। क्योंकि इसके पास नवीनतम अनुदेश होते है, यह व्यक्ति की ज्यादा मदद कर सकता है। यहूदी वैसे ही रहे। ईसाइयत आधी पृथ्वी पर फैल गयी। अब आधा संसार ईसाई है। भारत में जैन एक बहुत छोटा अल्पसंख्यक वर्ग बन चुके हैं क्योंकि वे सुनेगे नही। और उनके पास कोई जीवत गुरु नहीं है। उनके यहां बहुत साधु हैं, मुनि हैं बहुत हैं, क्योंकि वह उनकी सामर्थ्य है। वे एक समृद्ध जमात हैं। लेकिन वहाँ एक भी जीवत गुरु नहीं है। कोई अनुदेश उन्हें उच्चतर स्रोत द्वारा नहीं दिया जा सकता है। इस युग में, सारे संसार भर में भारत की थियोसॉफी के सबसे बड़े रहस्योद्घाटनों में से एक यह था कि गुरु सतत निर्देश दिये चला जाता है। पंतजलि कहते हैं, यह गुरुओं की तीसरी कोटि होती है-गुरुओ के गुरु की। यही अर्थ वे भगवान का करते ? समय की सीमाओं के बाहर होने के कारण वह गुरुओं का गुरु है। क्या है समय और कैसे कोई समय के पार चला जाता है? इसे समझने की कोशिश करना। समय इच्छा है क्योंकि इच्छा के लिए समय की जरूरत होती है। समय इच्छा का निर्माण है। यदि तम्हारे पास समय न हो, तो कैसे तम इच्छा कर सकते हो? इच्छा के सरकने के लिए कोई जगह ही नहीं होती है। इच्छा को आवश्यकता होती है भविष्य की। इसलिए वे लोग जो लाखों इच्छाओं में जीते हैं हमेशा मृत्यु से भयभीत होते हैं। क्यों होते हैं वे मृत्यु से भयभीत मे क्योंकि मृत्यु तुरत्त समय को काट डालती है। कोई समय रहता नहीं। और तुम्हारी लाखों इच्छाएं हैं, और मृत्यु सदा द्वार पर खड़ी मृत्यु का अर्थ है : अब कोई भविष्य न रहा। मृत्यु का अर्थ है : अब और समय न रहा। घड़ी भले ही टिकटिक करती धड़कती रहे, लेकिन तुम्हारी धड़कन नहीं टिकटिक कर रही होगी। और इच्छा की परिपूर्ति के लिए चाहिए समय, भविष्य। तुम वर्तमान में रह कर इच्छा में नहीं जी सकते; वर्तमान में इच्छाओं का अस्तित्व नहीं होता। क्या तुम किसी चीज की इच्छा कर सकते हो वर्तमान में रह कर? कैसे करोगे तुम इसकी इच्छा? यदि तुम इच्छा करते हो, तो फौरन भविष्य प्रवेश कर चुका होता है। कल भीतर आ पहुंचा या अगला पल आ गया। तुम इस पल में यहीं और अभी कैसे कर सकते हो इच्छा?
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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