SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घनिष्ठता, यही समर्पण। तुम इसे आजमा सकते हो। उदाहरण के लिए, किसी नदी को समर्पण कर दो। तुमने पढ़ी होगी हरमेन हेस की 'सिद्धार्थ' सिद्धार्थ बहुत सारी बातें सीखता है नदी से तुम उन्हें बुद्ध से नहीं सीख सकते। वह बस नदी को देखता रहता, नदी की अनेक-अनेक भाव भंगिमाओं को उसके आस-पास की हजारों जलवायु परिवर्तनों को देखते-देखते वह नाविक हो जाता है। कई बार नदी खुश होती और नाच रही होती और कई बार बहुत-बहुत उदास होती, जैसे कि बिलकुल निश्चल हो। कई बार वह बहुत क्रोध में होती - सारे अस्तित्व के विरुद्ध, और कई बार बहुत प्रशांत और शांतिमय होती बुद्ध की भांति । और सिद्धार्थ मात्र एक नाविक है। वह नदी से गुजरता है, नदी के करीब रहता है, नदी को देखता है कुछ और करने को नहीं है। यह बात एक गहरा ध्यान और गहन एकाक्य बन जाता है और नदी द्वारा तथा उसकी नदीमयता द्वारा वह प्राप्त कर गया। वह उसी झलक को उपलब्ध हो गया जैसी हेराक्लतु को मिली। तुम उसी नदी में उतर सकते हो और नहीं भी उतर सकते। नदी वही है और वही नहीं भी है। यह एक बहाव है, और नदी तथा उसमें बनी आत्मीयता के द्वारा वह सारे अस्तित्व को नदी के रूप में जान पाया - नदीमयता के रूप में। ऐसा किसी भी चीज के साथ घट सकता है बुनियादी चीज है समर्पण इसे ध्यान में रखो। 'क्या ईश्वर को समर्पण करना और गुरु को समर्पण करना एक ही बात है?' हां समर्पण हमेशा वही होता है। यह तुम पर निर्भर है कि तुम किसे समर्पण कर पाओ। व्यक्ति को ढूंढो, नदी को खोजो, और समर्पण कर दो। यह एक जोखम है। बड़े से बड़ा जोखम है। तुम अशांत प्रदेश में विचर रहे होते हो और तुम इतनी ज्यादा शक्ति दे रहे होते हो उस व्यक्ति को या उस चीज को, जिसे कि तुम समर्पण करते हो। यदि तुम मुझे समर्पण करते हो तो तुम मुझे समय शक्ति दे रहे हो तब मेरी हां तुम्हारी हां है, मेरी नहीं तुम्हारी नहीं है। यदि मैं दिन में भी कहता हूं यह रात है, तुम कहते हो, 'हां, यह रात है ।' तुम किसी को समग्र शक्ति दे रहे हो। अहंकार रोकता है। मन कहता है, यह अच्छा नहीं। स्वयं पर नियंत्रण रखो। कौन जाने यह आदमी तुम्हें कहां ले जाये? कौन जाने, वह कह दे, पहाड़ के शिखर से कूद पड़ी और फिर तुम मर जाओगे। कौन जाने, यह आदमी तुम्हें चालाकी से चलाये, तुम पर नियंत्रण करे, तुम्हारा शोषण करे। मन ये तमाम चीजें बीच में ले आयेगा। यह एक जोखम है, और मन सुरक्षा के सारे उपाय कर लेता है। मन कहता है, 'सचेत रहना । इस आदमी को थोडा और परख लो।' यदि तुम मन की सुनते हो, तो समर्पण संभव नहीं। मन ठीक कहता है। यह एक जोखम है लेकिन जब कभी तुम समर्पण करते हो, यह एक जोखम ही बनने वाला है जांचना -परखना कोई बहुत मदद न देगा। तुम सदा ही
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy