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________________ निद्रा का तर्क यही है कि कारण निर्मित करता है कार्य को, बीज निर्मित करता है फूल को। जागरण का तर्क इसके बिलकुल विपरीत है। वह है कि फूल निर्मित करता है बीज को, कार्य निर्मित करता है कारण को। यह भविष्य ही होता है जो उत्पन्न करता है अतीत को; न कि अतीत उत्पन्न करता है भविष्य को। लेकिन निद्रामय-चित्त के लिए, अधिक शक्तिशाली होता है अतीत, मृत, व्यतीत-जो कि है नहीं। जो अभी होने को है, वह अधिक शक्तिशाली है। जो अभी जन्मने को है वह अधिक शक्तिशाली है क्योंकि जीवन रहता है वहां। अतीत के कोई प्राण नहीं। कैसे हो सकता है वह शक्तिशाली? अतीत तो पहले से ही कब्रिस्तान है। जीवन तो पहले से ही वहां से जा चुका है इसलिए यह होता है बीता हआ। जीवन इसे छोड़ चुका। लेकिन कब्रिस्तान शक्तिशाली होते हैं तुम्हारे लिए। जो व्यक्ति जागरूकता के लिए है उसके लिए अभी जो होने को है, जो जन्म लेने को है अभी, ताजा, वह जो होने जा रहा है,ज्यादा शक्तिशाली बन जाता है। अतीत उसे रोके नहीं रख सकता। अतीत रोकता है। तुम सदा पीछे की वचनबद्धताओं के बारे में सोचते हो; तुम सदा कब्रिस्तान के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हो। तुम फिर-फिर जाते कब्रिस्तान की यात्रा करने और मृत को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने। हमेशा अपनी श्रद्धा उसे दो, जो होने को है क्योंकि जीवन वहां होता 'कृपया समझायें कि बिना समय के अंतराल के बीज विकसित कैसे हो सकता है?' हां, यह विकसित हो सकता है क्योंकि यह विकसित है ही; खिला हुआ ही है। फूल निर्मित करता है बीज को, न कि बीज फल को। फल जो खिल रहा है. उसने संपर्ण बीज का निर्माण किया है। लेकिन तुम्हें ध्यान में रख लेना है कि केवल द्वार खोलने की आवश्यकता होती है। खोलो द्वार; सूर्य वहां प्रतीक्षा कर रहा है। वस्तुत: यथार्थ में जीवन विकास नहीं है। निद्रा में यह विकास जैसा प्रतीत होता है। अंतस सत्ता (बीईंग) वहां पहले से ही है। हर चीज जैसी है, पूर्ण ही है; पहले से ही परम है, आनंदमयी है। कोई चीज जोड़ी नहीं जा सकती; इसे संशोधित करने का कोई तरीका नहीं। फिर जरूरत किसकी होती है? केवल एक चीज की, कि तुम बोधपूर्ण हो जाओ और इसे देखो। ऐसा दो ढंग से घट सकता है या तो तुम्हें झटके से तुम्हारी नींद से बाहर लाया जा सकता है-जो है झेन। या तुम्हें नींद से बाहर लाने के लिए राजी किया जा सकता है, जो है योग। को। बीच में ही लटके मत रहना। दूसरा प्रश्न:
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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