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________________ कृपया समझायें कि समय के अंतराल के बिना एक बीज कैसे विकसित हो सकता है? वह हो ही, समय की जरूरत पड़ती। तो समय लेने वाली विधि जरूर होगी। बीज विकसित लर हो सकता है बिना अंतराल के, बिना बीज वाले समयांतर के, क्योंकि बीज विकसित ही है। तुम वह हो ही, जो तुम हो सकते हो। यदि ऐसा न होता, तो बीज बिलकुल अभी खिल न सकता। तब समय की जरूरत पड़ती। तब झेन संभव न होता। तब केवल पतंजलि का मार्ग होता। यदि तुम्हें कुछ होना हो, तो समय लेने वाली विधि जरूरी होगी। लेकिन यही है बात समझ लेने की-जिन्होंने जाना है उन्होंने यह भी जाना कि कुछ होने की संभावना एक स्वप्न है। तुम अंतस सत्ता ही हो; तुम जैसे हो संपूर्ण हो। __ अपूर्णता प्रकट हुई लगती है क्योंकि तुम गहरी नींद में हो। फूल खिल ही रहा है, केवल तुम्हारी आंखें बंद हैं। अगर बीज को फूल होने तक बढ़ना होता, तब ज्यादा समय की जरूरत होती। और यह कोई साधारण फूल नहीं; परमात्मा को खिलना है तुममें। तब शाश्वतता भी पर्याप्त न होगी, तब यह लगभग असंभव है। यदि तुम्हें खिलना हो, तब तो यह लगभग असंभव है। यह घटने वाला नहीं; यह घट सकता नहीं। अनंतकाल की आवश्यकता होगी। नहीं, बात यह नहीं है। यह बिलकुल अभी घट सकता है इसी क्षण। एक क्षण भी नहीं गंवाना है। प्रश्न बीज के फूल होने का नहीं है, प्रश्न है आख खोलने का। तुम बिलकुल अभी अपनी आख खोल सकते हो. और तब तम पाओगे कि फल तो सदा से खिलता रहा है। वह कभी अन्यथा न था; यह दूसरे ढंग से हो नहीं सकता था। परमात्मा सदा तुम्हारे भीतर होता है। जरा ध्यान से देखो और वह प्रकट हो जाता है। ऐसा नहीं है कि वह बीज में छिपा हुआ था; तुम्हीं उसकी ओर नहीं देख रहे थे। तो केवल इतने भर की जरूरत होती है कि तुम उसकी ओर ध्यान से देख लो। जो कुछ भी तुम हो, उस ओर देख लो, उसके प्रति जागरूक हो जाओ। नींद में चलने वाले की भांति मत चलो-फिरो। इसीलिए ऐसा बतलाया जाता है कि बहुत सारे झेन गुरु जब वे संबोधि को उपलब्ध हए, ठहाका मारकर हंसने लगे थे। उनके शिष्य समझ न सकते थे, उनके सहयात्री नहीं समझ सकते थे कि क्या घट गया। क्यों वे पागलपन से अट्टहास कर रहे हैं? क्यों है यह हंसी? वे हंस रहे होते हैं इस सारे बेतुकेपन पर। वे उसे खोज रहे थे जो मिला ही हुआ है; वे उस चीज के पीछे भाग रहे थे जो पहले ही उनके भीतर थी; वे कहीं और खोज रहे थे उसे, जो स्वयं खोजने वाले में ही छिपा था।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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