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________________ हुए हो, इसे इसकी समग्रता तक ले आना तुम पर निर्भर है। यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो यह भी तुम पर निर्भर करता है। संसार के ऊपर कोई नहीं बैठा है शासक की तरह कोई तुम्हें जबरदस्ती उलन्न नहीं कर रहा या तुम्हें निर्मित नहीं कर रहा। स्वतंत्रता संपूर्ण है। तुम पाप कर सकते हो स्वतंत्रता के कारण, तुम दूर हट सकते हो स्वतंत्रता के कारण। तुम स्वतंत्रता के कारण पीड़ा भोगते हो। और जब तुम इसे समझ लेते हो तो पीड़ा भोगने की कोई जरूरत नहीं रहती, तुम लौट सकते हो और वह भी स्वतंत्रता के कारण ही। कोई तुम्हें वापस नहीं ला रहा और कोई कयामत का दिन नहीं आने वाला । तुम्हें जांचने को सिवाय तुम्हारे, अस्तित्व में और कोई नहीं तुम कर्ता हो, तुम निर्णायक हो। तुम्हीं हो अपराधी, तुम्हीं हो कानून । तुम्हीं हो सब कुछ। तुम लघु अस्तित्व हो। ईश्वर सर्वोत्कृष्ट है। वह दिव्य चेतना की वैयक्तिक इकाई है। वह जीवन के दुखों से तथा कर्म और उसके परिणामों से अछूता है। ईश्वर चैतन्य की अवस्था है। वह वस्तुतः कोई व्यक्ति नहीं, लेकिन वह निजता, अस्मिता है। अत: तुम्हें व्यक्तित्व और निजता के बीच के अन्तर को समझना होगा। व्यक्तित्व है बाह्य सतह। जैसे तुम दूसरों को दिखते हो वह तुम्हारा व्यक्तित्व होता है। तुम कहते हो, 'एक अच्छा व्यक्तित्व, एक सुंदर व्यक्तित्व, एक कुरूप व्यक्तित्व।' यह जैसे तुम दूसरों को दिखायी पड़ते हो वैसा होता है। तुम्हारा व्यक्तित्व तुम्हारे बारे में दूसरों की राय है, निर्णय है। यदि तुम इस धरती पर अकेले रह जाओ, तो क्या तुम्हारा कोई व्यक्तित्व रह जायेगा? कोई व्यक्तित्व नहीं रहेगा। क्योंकि कौन कहेगा कि तुम सुंदर हो, और कौन कहेगा तुम मूर्ख हो, और कौन कहेगा तुम लोगों के महान नेता हो? कोई होगा ही नहीं तुम्हारे बारे में कुछ कहने को। कोई राय न हो, तो तुम्हारे पास कोई व्यक्तित्व न होगा । व्यक्तित्व के लिए जो 'पर्सनलिटी' शब्द है यह ग्रीक शब्द 'पर्सोना' से आया है। ग्रीक नाटकों में, अभिनेताओं को मुखौटों का प्रयोग करना पड़ता था। वे मुखौटे कहलाते थे पसना पर्सनलिटी शब्द पर्सोना से आया है। वह चेहरा, जिसे तुम ओढ़े रखते हो। जब तुम पत्नी की ओर देखते हो और मुसकुराते हो, यह है - पर्सनलिटी - पर्सोना । तुम मुसकुराना चाहते नहीं, लेकिन तुम्हें मुसकुराना पड़ है। एक अतिथि आता है और तुम उसका स्वागत करते हो, लेकिन भीतर गहरे में तुम कभी नहीं चाहते थे कि वह तुम्हारे यहां आये। तुम परेशान होते हो तुम सोचते हो, अब क्या करूं इस आदमी का?' लेकिन तुम मुसकुरा रहे होते हो और तुम उसका स्वागत कर रहे होते हो और तुम कह रहे होते हो, 'मुझे कितनी खुशी हुई कि तुम आये।'
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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