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________________ पहला प्रश्न आपने कल रात कहा कि एक समग्र निराशा विफलता और आशारहितता योग का प्रारंभिक आधार बनाती हैं। यह बात योग को निराशावादी स्वप्न देती है। योग के पथ पर बढ़ने के लिए क्या सचमुच निराशापूर्ण अवस्था की जरूरत होती है? क्या आशावादी व्यक्ति भी योग के पथ पर बढ़ना आरंभ कर सकता है? योग ग इन दोनों में से कुछ नहीं। यह न निराशावादी है और न ही आशावादी । क्योंकि निराशावाद और आशावाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। निराशावादी व्यक्ति वह है जो पहले अतीत में आशावादी था। आशावादी का अर्थ है वह जो भविष्य में निराशावादी बनेगा। सारे आशावाद ले जाते हैं निराशावाद तक क्योंकि हर आशा ले जाती है निराशा तक । यदि तुम अब तक आशाएं किये चले जा रहे हो, तब योग तुम्हारे लिए नहीं । इच्छाएं हैं, आशाएं हैं, वहां संसार अभी है तुम्हारी इच्छाएं ही संसार है और तुम्हारी आशा बंधन है, क्योंकि आशा तुम्हें वर्तमान में होने न देगी। यह तुम्हें जबरदस्ती भविष्य की ओर ले जाती जायेगी, तुम्हें केंद्रीभूत न होने देगी। यह खीचेगी और धकेलेगी लेकिन यह तुम्हें विश्रामपूर्ण क्षण में स्थिरता की अवस्था में रहने न देगी। यह तुम्हें ऐसा न होने देगी। इसलिए जब मैं कहता हूं समग्र निराशा की बात, तो मेरा मतलब होता है कि आशा विफल हो गयी और निराशा भी निरर्थक बन गयी। तब वह निराशा समग्र है। एक संपूर्ण निराशा का अर्थ है कि कहीं कोई निराशा भी नहीं है, क्योंकि जब तुम निराशा अनुभव करते हो तो एक सूक्ष्म आशा वहां होती है, वरना तुम निराशा महसूस करो ही क्यों? आशा अभी बाकी है, तुम अब भी उससे चिपके हुए हो, इसलिए निराशा भी है। संपूर्ण निराशा का मतलब है कि अब कोई आशा न रही। और जब कोई भी आशा न रहे तो निराशा भी बच नहीं सकती। तुमने पूरी प्रक्रिया को ही गिरा दिया। दोनों पहलू फेंक दिये गये, सारा सिक्का ही गिरा दिया गया। मन की इस अवस्था में ही तुम योग के मार्ग में प्रविष्ट हो सकते हो, इससे पहले हरगिज नहीं। इससे पहले तो कोई संभावना नहीं। आशा योग के विपरीत है। योग निराशावादी नहीं है। तुम आशावादी या निराशावादी हो सकते हो, लेकिन योग इन दोनों में से कुछ नहीं है। अगर तुम निराशावादी हो, तो तुम योग के मार्ग पर नहीं बढ़ सकते क्योंकि एक निराशावादी व्यक्ति अपने दुखों से ही चिपका रहता है। वह अपने दुखों को तिरोहित न होने देगा।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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