SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुछ नहीं है-मात्र टुकड़े भर हैं। तुम उनसे एक समग्र बोध नहीं पा सकते हो। वे इतने पार हैं। वास्तव में, तुम अपने मन के जल में उनके प्रतिबिंब भर ही देखते हो। तुमने चांद को नहीं देखा है; तुमने झील में चांद को देख लिया है। तुमने यथार्थ को नहीं देखा है, तुमने मात्र दर्पण के प्रतिबिंब को देखा है, और प्रतिबिंब दर्पण पर निर्भर करता है। यदि दर्पण दोषपूर्ण है, तो प्रतिबिंब अलग होता है। तुम्हारा मन तुम्हारा दर्पण है। जब तुम कहते हो कि पतंजलि बहुत बड़े लगते हैं, कि उनका शिक्षण बहुत महान है, तब तुम इतना ही कह रहे हो कि तुम हेराक्लतु को बिलकुल भी नहीं समझ सकते। और यदि तुम नहीं समझ सकते, तो यह बात ही दर्शाती है कि वे पतंजलि से भी कहीं बहुत ज्यादा तुम्हारे पार हैं; वे और आगे चले गये हैं पतंजलि के। कम से कम तुम इतना भर समझ सकते हो कि पतंजलि कठिन दिखते हैं। अब ध्यान से मुझे समझो। यदि कोई चीज कठिन होती है, तो तुम उससे जूझ सकते हो। कितनी ही कठिन क्यों न हो, तुम उसमें जुट सकते हो। ज्यादा कठिन प्रयास की आवश्यकता होती है, लेकिन वह किया तो जा सकता है। हेराक्लतु सरल नहीं हैं, वे असंभव ही हैं। पतंजलि कठिन हैं, और जो कठिन है उसे तुम समझ सकते हो। तब तुम कुछ कर सकते हो। तुम तुम्हारा संकल्प, तुम्हारा प्रयास, तुम्हारी सारी ऊर्जा इसमें ला सकते हो। तुम कुछ कर सकते हो, और कठिन को हल किया जा सकता है, कठिन सरल बनाया जा सकता है, ज्यादा सूक्ष्म विधियां पायी जा सकती हैं। लेकिन असंभव का क्या करोगे तुम? उसे सरल नहीं बनाया जा सकता। फिर भी तुम स्वयं को धोखा दे सकते हो। तुम कह सकते हो, इसमें तो कुछ नहीं; यह बचकाना है! और तुम तो इतने बड़े हो गये हो इसलिए यह तुम्हारे लिए नहीं है। यह बच्चों के लिए है, न कि तुम्हारे लिए। यह मन की चालाकी है असंभव से बचने की। क्योंकि तुम जानते हो, तुम इसका सामना न कर पाओगे। तो सवर्तधक सरल रास्ता है सिर्फ कह देना कि 'यह मेरे लिए नहीं है; यह मुझसे नीचे है-एक बाल शिक्षा है।' और तुम एक विकसित परिपक्व व्यक्ति हो। तुम्हें चाहिए विश्वविद्यालय, तुम्हें बाल-विद्यालय नहीं चाहिए। पतंजलि तुम्हें जंचते हैं, पर वे बहुत कठिन लगते हैं। फिर भी वे हल किये जा सकते हैं। लेकिन असंभव को हल नहीं किया जा सकता है। यदि तुम हेराक्लतु को समझना चाहते हो, तो कोई रास्ता नहीं सिवाय इसके, कि तुम अपना मन पूरी तरह गिरा दो। यदि तुम पतंजलि को समझना चाहते हो, तो एक क्रमिक मार्ग है। वे तुम्हें सीढियां देते हैं, जिनसे तुम काम चला लेते हो। लेकिन ध्यान रहे, आखिरकार, अंततः वे भी तुमसे कहेंगे, 'मन को गिरा दो।' जो हेराक्लतु प्रारंभ में कहते हैं, वे उसे अंत में कहेंगे; लेकिन मार्ग पर, रास्ते पर, तुमसे चक्कर लगवाया जा सकता है। अंत में वे वही बात कहने वाले हैं, पर फिर भी
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy