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________________ और मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि अगर तुम मेरा गलत अर्थ न लगाते, तो तुम तुम ही न होते। तुम्हें कुछ का कुछ समझना ही होता है। जो मैंने कहा हेराक्लतु झेन और जीसस के विषय में वह तुमने नहीं समझा है। और यदि हेराक्लतु झेन और जीसस को नहीं समझ सकते, तो तुम पतंजलि को भी न समझ पाओगे। समझने का पहला नियम है तुलना न करना। तुम तुलना कैसे कर सकते हो? तुम हेराक्लत् या बाशो या बुद्ध या जीसस या पतंजलि के अंतरतम की अवस्था के विषय में क्या जानते हो? तुम तुलना करने वाले हो कौन? तुलना एक निर्णय है। तम निर्णय करने वाले हो कौन? लेकिन मन करना चाहता है निर्णय क्योंकि निर्णय में मन कहीं ऊंचा अनुभव करता है। तुम निर्णायक बन जाते हो, इसलिए तुम्हारा अहंकार बहुत अच्छा अनुभव करता है। तुम अहंकार को पोषित करते हो। निर्णय और तुलना द्वारा तुम सोचते हो कि तुम जानते हो। वे सब विभिन्न प्रकार के फूल हैं-अतुलनीय। तुम गुलाब की तुलना कमल से कैसे कर सकते हो? क्या तुलना करने की कोई संभावना है? इसकी कोई संभावना नहीं, क्योंकि दोनों विभिन्न संसार हैं। तुम चंद्रमा की तुलना सूर्य से कैसे कर सकते हो?कोई संभावना नहीं। वे विभिन्न आयाम हैं। हेराक्लतु जंगल के फूल हैं, पतंजलि एक परिष्कृत बगीचे हैं। पतंजलि तुम्हारी बुद्धि के ज्यादा निकट होंगे। हेराक्लतु तुम्हारे हृदय के ज्यादा निकट होंगे। लेकिन जैसे-जैसे तुम और गहराई में जाते हो, भेद खो जाते हैं। जब तुम स्वयं खिलने लगते हो, तब एक नयी समझ का सूर्योदय तुममें प्रकट होता है-यह समझ, कि फूल अपने रंग में भिन्न होते हैं, सुगंध में भिन्न होते हैं, बनावट में भिन्न, रूप में भिन्न होते हैं लेकिन खिलने में वे अलग नहीं होते। वह खिलना, वह घटना कि वे खिल गये हैं, वही होती है। हेराक्लत् निस्संदेह अलग हैं; ऐसा उन्हें होना ही है। प्रत्येक व्यक्ति बेजोड़ है, और पतंजलि भिन्न हैं। तुम उन्हें एक श्रेणी में नहीं रख सकते। कोई कोष्ठ अस्तित्व नहीं र छते, जहां तुम उन्हें जबरदस्ती ला सको या उन्हें श्रेणीबद्ध कर सको। पर अगर तुम भी खिलते हो, तो तुम समझ पाओगे कि विकसित होना, खिलना वही होता है; चाहे वह फूल कमल हो या गुलाब, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। ऊर्जा के उत्सव तक पहुंचने की अंतरतम घटना वही है। वे अलग ढंग से बात कहते हैं; उनके मन के ढांचे विभिन्न हैं। पतंजलि वैज्ञानिक विचारक हैं। वे एक व्याकरणविद हैं,भाषाविद हैं। हेराक्लत् एक आदिम, एक उददाम कवि है। वे व्याकरण और भाषा और रूप की चिंता नहीं करते। और जब तुम कहते हो कि पतंजलि पर मेरे विचार सुनते हुए तुम अनुभव करते हो कि हेराक्लतु और क्राइस्ट और झेन बचकाने लगते हैं, बाल-शिक्षण की भांति तो तुम पतंजलि या हेरास्लतु के बारे में कुछ नहीं कह रहे तुम अपने ही बारे में कुछ कह रहे हो। तुम कह रहे हो कि तुम मस्तिष्क में जीने वाले व्यक्ति हो।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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