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________________ को सचेत रहने की कोई जरूरत नहीं कि उन्हें अंतर्ग्रस्त नहीं होना है। वे अंतर्ग्रस्त हो नहीं सकते। जो कुछ भी हो दशा, वे असम्मिलित बने रहते हैं। वे तुम्हारे लिए करुणा अनुभव कर सकते हैं, लेकिन वे सहानुभूति भरे नहीं हो सकते। इसे ध्यान में रखना। और करुणा तथा सहानुभूति के बीच का अंतर समझने की कोशिश करना। करुणा उच्चतर स्रोत से चली आती है। बुद्ध तुम्हारे प्रति करुणामय रह सकते हैं। वे तुम्हारी बात समझते है कि तुम मुश्किल में हो, लेकिन वे तुम्हारे प्रति सहानुभूति भरे नहीं है क्योंकि वे जानते हैं कि यह तुम्हारी मूर्खता के कारण हुआ है कि तुम मुश्किल में हो। यह तुम्हारी छूता के कारण ही है कि तुम कठिनाई में पड़े हो। उनके पास करुणा है। तुम्हारी नासमझी में से तुम्हें बाहर लाने में वे हर तरह से मदद करेंगे। लेकिन तुम्हारी नासमझी कोई ऐसी चीज नहीं है जिसके साथ वे सहानुभूति करने वाले हैं। तो एक तरह से वे बहुत ऊष्मामय होंगे और एक तरह से बहुत शीतल और भावशून्य। जहां तक उनकी करुणा का संबंध है, वे स्नेही होंगे। और वे बहुत शीतल और तटस्थ होंगे-जहां तक कि उनकी सहानभूति का संबंध है। और साधारणतया अगर तुम बुद्ध के पास जाते तो तुम अनुभव करोगे कि वे तटस्थ हैं। क्योंकि तुम नहीं जानते करुणा क्या है और तुम नहीं जानते करुणा की शीतलता को। तुम केवल सहानुभूति की गर्मी को जानते हो, और वे सहानुभूतिपूर्ण नहीं हैं। वे जान पड़ते हैं कूर, भावशून्य। अगर तुम रोते-चीखते हो, तो वे नहीं रोने-चीखने वाले तुम्हारे साथ। और अगर वे रोते है,तब कोई नहीं होती कि कोई सहायता उनसे तम तक पहुंच सके। तब तो वे उसी स्थिति में हैं जिसमें कि तुम हो। वे नहीं रो सकते, तो तुम्हें इसकी चोट पहुंचेगी- 'मैं चीख रहा हूं रो रहा हूं और वे सिर्फ बुत की तरह बने रहते हैं जैसे कि उन्होंने सुना ही न हो!' किन्तु वे तुम्हारे प्रति सहानभूति नहीं रख सकते। सहानुभूति उसके द्वारा होती है जिसका उसी प्रकार का मन हो, जैसा कि तुम्हारा है। करुणा उच्चतर स्रोत से आती है। वे तुम्हें देख सकते है। तुम उनके सामने पारदर्शी होते हो, पूर्णतया नग और वे जानते है कि तुम क्यों दुख भोग रहे हो। तुम्ही हो कारण। और वे इस कारण को तुम्हें समझाने की चेष्टा करेंगे। यदि तुम उन्हें सुन सकते हो, तो सुनने का कार्य ही तुम्हारी बहुत मदद कर देगा। यह विरोधाभासी दिखता है लेकिन है नहीं। बद्ध भी तुम्हारी तरह जीये है। अगर इस जीवन में नहीं, तो किन्हीं पिछले जन्मों में। वे उन्हीं संघर्षों में चलते रहे। वे तुम्हारी तरह नासमझ रहे, उन्होंने तुम्हारी तरह कष्ट पाया, उन्होंने तुम्हारी तरह ही संघर्ष किया। बहुत-बहुत जन्मों से वे उसी मार्ग पर थे। वे सारी यंत्रणा को जानते हैं, सारे संघर्ष को, अंतर्दवंदव को, पीड़ा को। वे जागरूक हैं, तुमसे अधिक जागरूक, क्योंकि अब ये सारे पिछले जन्म उनकी नजरों के सामने हैं केवल अपने ही नहीं बल्कि तुम्हारे भी। उन्होंने वे सब समस्याएं जी ली है जिन्हें कोई मानव-मन जी सकता
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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