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________________ ऊंचे मस्तिष्क का स्पर्श पा रहा है। वह जुड़ गया है चीजों की किसी ऊंची व्यवस्था के साथ। वह जुड़ा है उस व्यापक और वैश्विक मनस के साथ। हमेशा इसी भांति हुआ है। बुद्ध,जीसस, कृष्ण, वे हमेशा कुछ अनियमित और मौजी से ही दीख पड़ते हैं। वे हम जैसे नहीं लगते; वे अनजाने, बाहरी व्यक्ति जान पड़ते है! इसीलिए हम उन्हें अवतार कहते हैं-बाहरी व्यक्ति! जैसे कि वे किसी अन्य मह से आये हों, जैसे कि वे हमारे इस संसार से संबंधित न हों। वे ऊंचे है, अच्छे है बहत, पावन भी हैं लेकिन वे हमारे बीच के व्यक्ति नहीं। वे कहीं और से आते हैं, वे हमारे अस्तित्व के अनविार्य अंग नहीं। यह भावना अटल हो गयी है कि वे कहीं बाहर के व्यक्ति है; पर वे 'बाहरी' व्यक्ति नहीं है। वे वास्तविक अंतरंगी है क्योंकि उन्होंने अस्तित्व के अंतरतम सार का स्पर्श किया है, उसके सबसे आन्तरिक मर्म से जुड़े है। लेकिन हमें बाहरी व्यक्ति ही लगते है। 'अब योग का अनुशासन।' यदि तुम्हारे मन ने पूरी तरह समझ लिया है कि जो कुछ तुम अब तक कर रहे थे वह बिलकुल निरर्थक था; कि वह बुरे से बुरा दुख स्वप्न था या अच्छे से अच्छा सपना था, तब अनुशासन का मार्ग तुम्हारे सामने खुल जाता है। वह मार्ग क्या है? उसकी मूलभूत परिभाषा है योग मन की समाप्ति है। योगश्रित्तवृत्तिनिरोध:। मैने तुमसे कहा था, पतंजलि तो सीधे गणितज्ञ हैं। एक ही वाक्य- 'अब योग का अनुशासन' - और बात खत्म हो गयी। यही केवल एक वाक्य है जिसे पतंजलि तुम्हारे लिए प्रयोग करते है। फिर वे इसे निशित हुआ ही समझ लेते हैं कि तुम्हारी योग में रुचि है- आशा के स्वप्न में नहीं, अनु सन के स्वप्न में; एक स्वपांतरण के स्वप्न में- अभी और यहां। वे और आगे परिभाषा देते है- 'योग मन की समाप्ति है।' यही योग की परिभाषा है, सबसे सही परिभाषा। योग को बहुत ढंग से परिभाषित किया गया है। बहुत-सी परिभाषाएं है इसकी। कुछ कहते हैं कि योग दिव्य सत्ता के साथ मन का मिलन है, इसीलिए इसे 'योग' कहा जाता है, क्योंकि योग का मतलब है मिलना, दो का जुड़ना। और कई कहते है कि योग का अर्थ है अहंकार का गिर जाना। अहंकार ही बीच में बाधा है और जिस क्षण तुमने अहंकार को गिरा दिया, तुम दिव्य सत्ता से जुड़ जाते हो। तुम जुड़े ही हुए थे लेकिन इस अहंकार के कारण ही लगता रहा कि तुम जुड़े हुए नहीं हो। बहुत व्याख्याएं हैं, लेकिन पतंजलि की
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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