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________________ यह ध्यान में लेना-उन्हें मारना और नष्ट करना नहीं है। वे मुा जाती हैं। तुम उनमें रुचि नहीं रखते हो क्योंकि तुम्हारे पास अब अधिक गहरा स्रोत है। तुम चुंबकीय ढंग से उसकी ओर आकर्षित होते हो। अब तुम्हारी सारी ऊर्जा भीतर की ओर सरक रही होती है। और इच्छाएं बस उपेक्षित होती हैं। लेकिन तम उनसे लड़ नहीं रहे। अगर तम उनके साथ लड़ते हो, तो तम कभी नहीं जीतोगे। यह तो ठीक ऐसे कि तुम्हारे साथ पत्थर है, रंगीन पत्थर हैं तुम्हारे हाथ में। अब अचानक तुम हीरों के बारे में जान जाते हो और वे पास पड़े हुए हैं। तो तुम रंगीन पत्थरों को फेंकते हो केवल अपने हाथ में हीरों के लिए रिक्त स्थान निर्मित करने के लिए। तुम पत्थरों से नहीं लड़ रहे हो, लेकिन हीरे वहां होते हैं तो तुम बड़ी आसानी से पत्थरों को गिरा देते हो। वे अपना अर्थ खो चुके होते हैं। इच्छाओं का महत्व ही गिर जाना चाहिए। अगर तुम उनसे लड़ते हो, तो महत्व नष्ट नहीं हआ। उल्टे, संघर्ष उन्हें अधिक महत्व दे सकता है। वे अधिक महत्वपूर्ण बन जाती हैं। और यही हो रहा है। जो किसी इच्छा के साथ लड़ते हैं उनके साथ यही होता है कि इच्छा मन का केंद्र बिंदु बन जाती है। उदाहरण के लिए, यदि तुम कामवासना से लड़ते हो, तो कामभाव केंद्र बन जाता है। फिर, सतत तुम इसमें व्यस्त हो जाते हो, इससे घिर जाते हो। यह घाव की तरह बन जाता है। जहां कहीं तुम देखते हो, वह कामवासनापूर्ण बन जाता है। मन का एक मेकेनिज्य है, एक रचनातंत्र है, एक पुराना बचे रहने का मेकेनिज्य-संघर्ष या पलायन। दो तरीके हैं मन के या तो तुम किसी चीज से संघर्ष कर सकते हो या तुम उससे पलायन कर सकते हो। अगर तम मजबूत होते हो, तब तम लड़ते हो। अगर तुम कमजोर होते हो, तब तम भाग निकलते हो; तब तुम पलायन ही कर जाते हो। लेकिन दोनों तरीकों में अन्य महत्वपूर्ण हो जाता है। वह अन्य होता है केंद्र। तुम लड़ सकते हो या तुम संसार से पलायन कर सकते हो उस संसार से, जहां इच्छाएं संभव होती हैं। तुम हिमालय पर जा सकते हो, वह भी एक संघर्ष है; कमजोर का संघर्ष। मैंने सुना है कि एक बार मुल्ला नसरुद्दीन एक गांव में खरीद-फरोख्त कर रहा था। उसने अपने गधे को गली में छोड़ दिया और दुकान में चला गया कुछ खरीदने के लिए। जब वह बाहर आया तो वह बहुत क्रोधित हो गया। किसी ने उसके गधे को पूरी तरह लाल रंग से, गहरे लाल रंग से रंग दिया था। क्रोध में था और उसने पछा, 'किसने किया है ऐसा? मैं उस आदमी को मार दूंगा।' एक छोटा लड़का वहां खड़ा हुआ था। वह बोला, 'एक आदमी ने ऐसा किया है, और वह आदमी अभी-अभी शराब-घर के भीतर गया है। नसरुद्दीन भीतर गया। वह तेजी से अंदर जा पहुंचाक्रोधित, पागल हआ। वह बोला, "किसने किया है यह? किसने आखिर मेरे गधे को रंग दिया है?
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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