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________________ वैराग्य को, निराकांक्ष को पाना है, तब यह सबसे अच्छा ढंग है-सभी इच्छाओं को मार देना। तब तुम बिना इच्छाओं के होओगे! लेकिन तुम मरे हुए भी होओगे। तुम नियमों पर ठीक-ठीक चल रहे होओगे। लेकिन यदि तुम सारी इच्छाओं को मार देते हो तो तुम स्वयं को मार रहे होओगे। क्योंकि इच्छाएं केवल इच्छाएं नहीं है, वे जीवन-ऊर्जा का प्रवाह है। तो वैराग्य प्राप्त करना है किसी चीज को मारे बिना। वैराग्य प्राप्त करना है अधिक जीवन के साथ, अधिक ऊर्जा के साथ; कम ऊर्जा के साथ नहीं। उदाहरण के लिए, तुम कामवासना को आसानी से मार सकते हो अगर तुम शरीर को भूखों मारते हो क्योंकि कामवासना और भोजन गहरे रूप से संबंधित हैं। भोजन की आवश्यकता है तुम्हारे जीवित रहने के लिए, व्यक्ति के जीवित रहने के लिए,और कामवासना की आवश्यकता है, प्रजाति के, मानव जाति के जीवित रहने के लिए। एक तरह से वे दोनों भोजन हैं। बिना भोजन के व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता और बिना कामवासना के मनुष्य जाति जीवित नहीं रह सकती। लेकिन मुख्य बात है व्यक्ति। यदि व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता, तब मनुष्य जाति के जीवित रहने का तो कोई प्रश्न ही नहीं। तो यदि तुम अपने शरीर को भूखा मारते हो, यदि तुम अपने शरीर को इतना कम भोजन देते हो कि उससे जो ऊर्जा निर्मित होती है वह रोज-रोज के दैनिक कार्य में खर्च हो जाती है-तुम्हारे चलने, तुम्हारे बैठने, तुम्हारे सोने में, और कोई अतिरिक्त ऊर्जा संचित नहीं होती, तब कामवासना विलीन हो जायेगी। क्योंकि कामवासना हो सकती है केवल तभी, जब व्यक्ति अतिरिक्त ऊर्जा एकत्रित कर रहा हो-जितनी उसे अपने जीवित रहने के लिए जरूरत है उससे ज्यादा। तब शरीर प्रजाति के बने रहने की सोच सकता है। लेकिन यदि तुम खतरे में होते हो,' तब शरीर बिलकुल भूल जाता है कामवासना के बारे में। इसलिए उपवास के लिए इतना ज्यादा आकर्षण है, क्योंकि अगर तुम उपवास रखते हो, तो सना मिट जाती है। लेकिन यह निर्वासना नहीं है। यह तो बस अधिक और अधिक मरदा हुए जाना है; कम और कम जीवित होना। भारत में जैन शइन निरंतर उपवास रखते रहे हैं केवल ब्रह्मचर्य को उपलब्ध करने के लिए ही, क्योंकि अगर तुम निरंतर उपवास रखते हो,अगर तुम सदा भुखमरी वाले आहार पर रहो, तो कामवासना मिट जाती है। किसी दूसरी चीज की जरूरत नहीं है न मन के रूपांतरण की, न आंतरिक ऊर्जा के रूपांतरण की। केवल भूखा रहना मदद करता है। फिर तुम भूखा रहने की आदत डाल लेते हो। और अगर तुम इसे वर्षों तक सतत जारी रखो, तो तुम एकदम भूल ही जाओगे कि कामवासना अस्तित्व भी रखती है। कोई ऊर्जा निर्मित नहीं हई, कोई ऊर्जा कामकेंद्र की ओर नहीं बहती। बहने के लिए कोई ऊर्जा है ही नहीं। व्यक्ति बना रहता है, बस मरी हई चीज की तरह। कोई कामवासना नहीं होती।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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