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________________ ग्रहण करने के लिए वहां हो या नहीं इसका कोई प्रश्र ही नहीं। वह तो नदी की भांति बह रहा है। और यदि तुम खाली हो एक पात्र की तरह तैयार और खुले हुए तो वह तुममें बह आयेगा। शिष्य का अर्थ है, वह व्यक्ति जो ग्रहण करने को तैयार है, जो एक गर्भाशय की तरह बन चुका है ताकि सद्गुरु उसमें प्रवेश कर सकें, उसे अनुप्राणित कर सकें। सत्संग शब्द का यही अर्थ है। सत्संग प्रवचन नहीं है। हां, प्रवचन हो सकता है, लेकिन प्रवचन तो बस एक बहाना है। तुम यहां हो और मैं पतंजलि के सूत्रों पर बोलूंगा, लेकिन वह एक बहाना है। यदि तुम सच में ही यहां हो तब यह प्रवचन,यह बोलना, यह तो तुम्हारे यहां होने का बहाना मात्र ही है। यदि तुम सच में ही यहां हो तो सत्संग आरम्भ होने लगता है। मैं प्रवाहित हो सकता हैं और वह प्रवाह किसी भी बातचीत से कहीं अधिक गहरा है। वह प्रवाह भाषा के द्वारा बने संप्रेषण से, तुम्हारे साथ हुई किसी भी मानसिक भेंट से बहुत गहरा है। जब तुम्हारा मन सुनने में संलग्न है, तब यह मिलन, यह संप्रेषण घटित होता है। यदि तुम शिष्य हो, यदि तुम एक अनुशासित व्यक्ति हो, यदि तुम्हारा मन मुझे सुनने में संलग्न है, तुम्हारी अंतस सत्ता सत्संग में हो सकती है। तब तुम्हारा सिर व्यस्त रहता है और हृदय खुला रहता है, तब एक गहरे तल पर मिलन घटित होता है। वही मिलन सत्संग है। और दूसरी बातें तो बस बहाने हैं, सद्गुरु के निकट होने के। पास होना ही सब कुछ है। लेकिन केवल शिष्य ही पास हो सकता है। कोई भी या हर कोई पास नहीं आ सकता। क्योंकि जुड़ाव का, पास आने का मतलब है एक प्रेम-भरा भरोसा। हम निकट क्यों नहीं होते? क्योंकि डर रहता है। बहुत नजदीक होना खतरनाक हो सकता है, बहुत खुला होना खतरनाक हो सकता है क्योंकि तब तुम अति संवेदनशील हो जाते हो और तब स्वयं का बचाव करना मुश्किल हो जायेगा। इसलिए एक सुरक्षा के उपाय की तरह हम हर व्यक्ति से एक खास दूरी बनाये रखते हैं। __ प्रत्येक व्यक्ति के आस-पास एक अपना क्षेत्र होता है। और जब कोई तुम्हारे उस क्षेत्र में प्रवेश करता है, तुम भयभीत हो जाते हो। हर व्यक्ति के पास बचाव के लिए बनाया फासला है। तुम अकेले अपने कमरे में बैठे हो और एक अजनबी कमरे में दाखिल होता है। तब जरा ध्यान देना कि तुम सचमुच डर जाते हो। एक सीमाबिन्दु है। यदि वह व्यक्ति उस बिन्दु तक पहुंच जाये या उसके पार पहुंच जाये तो तुम आशंकित हो उठेने, भयभीत हो जाओगे। अचानक एक कंपन महसूस करने लगोगे। वह आदमी एक खास सीमाबिन्द तक ही आ सकता है।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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