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________________ करुणा और श्रद्धा दोनों खो गयी हैं और केवल मित्रता बनी रह गयी है। लेकिन बिना करुणा और श्रद्धा के मित्रता तो बस बीच में लटक रही है मुरदा -सी, क्योंकि दो छोर लापता हैं। यह केवल उन दो छोरों के बीच जीवित रह सकती है। अगर तुममें श्रद्धा होती है, तब देर अबेर करुणा तुम्हारी ओर बहना शुरू कर देगी। अगर तुममें श्रद्धा होती है, तब ऊर्जा का कोई उन्नत शिखर तुम्हारी ओर बहने लगेगा। लेकिन यदि तुम श्रद्धा में नहीं हो, तो करुणा तुम्हारी ओर नहीं बह सकती। तुम उसकी ओर खुले हुए नहीं होते हो। सारे अभ्यास, सारे प्रयोग, सबसे नीचे होने के हैं, जिससे कि उच्चतम तुममें बह सके। सबसे नीचे होने के! जैसा कि जीसस कहते हैं, कि मेरे प्रभु के राज्य में वही पहले होंगे जो आखीर में खड़े है। बन जाओ नत अंतिम अचानक जब तुम सबसे नीचे होते हो, तुममें सबसे ऊंचे को ग्रहण करने की क्षमता होती है और केवल सबसे निचली गहराई की ओर ही उच्चतम आकर्षित होता और खिंचता है। वह चुम्बक बन जाती है। श्रद्धा के साथ' का अर्थ हुआ, तुम सबसे नीचे हो। इसीलिए बौद्धों ने भिक्षुहोना चुना है, सूफियों ने चुना है फकीर होना - निम्नतम मात्र ही - फकीर । और हमने देखा है कि इन भिखारियों में श्रेष्ठतम घटित हुआ लेकिन यही उनका चुनाव है। उन्होंने स्वयं को होते हैं। किसी के साथ प्रतिस्पर्द्धा में नहीं, बस घाटी की भांति, नीचे। सबसे नीचे। आखीर में रख दिया है। वे अन्तिम व्यक्ति इसलिए पुराने सूफी कथनों में यह कहा गया है' ईश्वर के गुलाम बन जाओ - गुलाम मात्र । उसका नाम जपते हुए निरंतर उसकी अनुकंपा मानते हुए निरंतर कृतज्ञता अनुभव करते हुए। निरंतर से आशीषों से भरे हुए, जिसे उसने तुम पर बरसाया है।' और इस भाव के साथ, इस श्रद्धा के साथ अविरत अभ्यास को भी चलने दो। पतंजलि कहते हैं कि ये दोनों, वैराग्य और अभ्यास, मन के समाप्त होने में मदद करते हैं और जब मन समाप्त होता है, तुम पहली बार वास्तव में वही होते हो, जो तुम्हारी आत्यंतिक क्षमता है, वही, जो तुम्हारी आत्यंतिक नियति है। आज इतना ही।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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