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________________ उदासी को उतार देना चाहता है, लेकिन उसे होश नहीं कि उदासी उसमें क्यों है। वह इसे दूसरे कारणों से बनाये हुए है जिन्हें वह स्मरण नहीं कर पा रहा है। उसे प्रेम की जरूरत है, लेकिन अगर तुम्हें प्रेम चाहिए तो तुम्हें प्रेममय होना पड़ता है। अगर तुम प्रेम की मांग करते हो, तो तुम्हें प्रेम देना होता है, और जितना मांग सकते हो उससे ज्यादा तुम्हें देना होता है। लेकिन वह कंजूस है; वह प्रेम नहीं दे सकता। देना उसके लिए असंभव है; वह कोई चीज नहीं दे सकता। देने का नाम भर लो और वह अपने भीतर सिकुड़ जायेगा। वह केवल ले सकता है, वह दे नहीं सकता। जहां तक देने का संबंध है; वह बंद है। बिना प्रेम के तुम नहीं खिल सकते। बिना प्रेम के तुम कोई आनंद प्राप्त नहीं कर सकते, तुम प्रसन्न नहीं हो सकते। लेकिन वह प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रेम तो ऐसा लगता है जैसे तुम कुछ दे रहे हो। यह देना है वह सब, जो तुम्हारे पास है तुम्हारा अस्तित्व भी उसे पूरे हृदय से अर्पित करना। वह प्रेम दे नहीं सकता, वह प्रेम ले नहीं सकता। तो करोगे क्या? लेकिन वह इसके लिए लालायित है, जैसा कि सभी लालायित हैं प्रेम के लिए भोजन की तरह यह एक बुनियादी जरूरत है। बिना भोजन के तुम्हारा शरीर मर जायेगा और बिना प्रेम के तुम्हारी आला सिकुड़ जायेगी । यह अनिवार्य बात है। अतः उसने एक परिपूरक बना लिया है उसकी जगह, और वह परिपूरक है सहानुभूति वह प्रेम नहीं पा सकता क्योंकि वह प्रेम दे नहीं सकता, लेकिन वह सहानुभूति पा सकता है सहानुभूति एक दरिद्र परिपूरक है प्रेम के लिए वह उदास है, क्योंकि जब वह उदास होता है, तो लोग उसे सहानुभूति देते हैं जो कोई भी उसके पास आता है सहानुभूतिपूर्ण होता है क्योंकि वह तो हमेशा चीख-चिल्ला रहा है और रो रहा है और उसका मूड हमेशा दुखी आदमी का है। लेकिन वह इसमें रस लेता है। जब कभी तुम उसे सहानुभूति देते हो, उसका मजा लेता है वह । तब वह और ज्यादा दुखी बन जाता है, क्योंकि जितना ज्यादा वह दुखी होता है, उतनी ज्यादा सहानुभूति उसे मिल सकती है। मैंने उससे कहा, 'तुम्हारी उदासी में तुम्हारी एक निश्चित लागत लगी है। यह सारा ढांचा गिराना होगा। उदासी मात्र नहीं गिरायी जा सकती। यह कहीं और ही बद्धमूल है। सहानुभूति की मांग मत करो। लेकिन तुम सहानुभूति की मांग करना बंद कर सकते हो केवल तभी, जब तुम प्रेम देना शुरू करते हो क्योंकि यह एक परिपूरक है और एक बार तुम प्रेम देने लगते हो, तो प्रेम तुममें घटित होगा। तब तुम प्रसन्न होओगे तब एक अलग ढांचा निर्मित होगा।' मैंने सुना है कि एक आदमी कार पार्किंग की जगह में दाखिल हुआ। वह बहुत हास्यास्पद मुद्रा में था। जैसा वह दिख रहा था, वह ढंग, लगभग असंभव लगता था, क्योंकि वह नीचे झुका जा रहा था, जैसे कि वह कार चला रहा हो। उसके हाथ किसी अदृश्य व्हील पर घूम रहे थे, उसके पांव किसी अदृश्य एक्सेलरेटर पर थे और वह चला रहा था। अत्यधिक कठिन लगता था, बहुत असंभव ।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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