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________________ इतना कठिन होता है, क्योंकि तुम्हें लगातार सचेत रहना होता है। और बहुत ज्यादा चीजें हैं जिनके प्रति सचेत होना होता है-सडक, ट्रैफिक, मैकेनिज्म, व्हील, एक्सेलेटर, ब्रेक्स,सड़क के नियम और अधिनियम, और हर चीज। तुम्हें हर चीज के प्रति लगातार जागरूक होना होता है। तुम इसमें इतने सम्मिलित हो जाते हो कि यह कठिन हो जाता है। यह बात एक गहरा प्रयत्न बन जाती है। लेकिन धीरे-धीरे तुम हर चीज पूरी तरह भुला देने योग्य हो जाओगे। तुम ड्राइविंग करोगे, लेकिन ड्राइविंग अचेतन बन जायेगी। इसमें अपने मन को लाने की जरूरत न रहेगी। तुम जिस किसी चीज के बारे में चाहो सोचते रह सकते हो, जहां चाहो मन को पहुंचा सकते हो, और कार चलती रहेगी अचेतन की क्षमता से। अब तुम्हारा शरीर इसे सीख चुका है, अब सारी संरचना इसे जानती है। यह एक अचेतन शिक्षा बन चुकी है। जब कभी कुछ इतना गहरा हो जाता है कि तुम्हें उसका होश रखने की जरूरत न रहे, तो वह अचेतन में जा पड़ा होता है। और एक बार कोई चीज अचेतन में पड़ जाती है, तो वह तुम्हारे होने को, जीवन को, चरित्र को परिवर्तित करना शुरू कर देगी। यह परिवर्तन प्रयासहीन होगा अब, तुम्हें इससे संबंध रखने की जरूरत नहीं है। तुम उस दिशा में आगे बढ़ने लगोगे जहां अचेतन तुम्हें ले जा रहा है। योग ने बहुत अधिक कार्य किया है 'अभ्यास' पर। सतत पुनरावृत्ति। यह सतत दोहराव है मात्र तुम्हारे अचेतन को कार्य पर ले आने के लिए। और जब अचेतन कार्य करना शुरू करता है, तुम निश्चित होते हो। किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है, चीजें स्वाभाविक बन जाती हैं। पुराने शास्त्रों में कहा गया है कि संत वह नहीं है जिसके पास अच्छा चरित्र है, क्योंकि ऐसी चेतना भी दिखाती है कि 'विरोधी तत्व' अब भी बना हुआ है, विपरीत अब भी जीवित है। संत वह है जो बरा नहीं कर सकता, जो उसके बारे में सोच भी नहीं सकता। अच्छाई अचेतन बन गयी है, वह सांस जैसी बन गयी है। जो कुछ भी वह करने जा रहा है वह अच्छा होगा। उसके अस्तित्व में यह इतने गहरे उतर चुकी है कि किसी प्रयास की आवश्यकता नहीं है। वह उसकी जिंदगी बन चुकी है। अत: तुम नहीं कह सकते कि संत की है। अत: तम नहीं कह सकते कि संत एक अच्छा आदमी होता है। वह नहीं जानता कि क्या अच्छा है और क्या बुरा? अब दो के बीच कोई अन्तर्संघर्ष नहीं है उसमें। अच्छाई इतनी गहराई में प्रवेश कर चुकी है कि उसके लिए इस बारे में जागरूक होने की कोई जरूरत नहीं है। यदि अपनी अच्छाई के प्रति तुम सचेत हो, तो बुराई अब तक पास-पास बनी हुई है और यह एक निरंतर संघर्ष है। हर बार तुम्हें कार्य करना पड़ता है, तुम्हें चुनना पड़ता है- 'मुझे अच्छा करना चाहिए, मुझे बुरा नहीं करना चाहिए।' और यह बात एक गहरी अशांति, संघर्ष, एक सतत आंतरिक हिंसा, एक भीतर-युदध बनने वाली है। और यदि अंतर्संघर्ष वहां है, तो तुम विश्रामपूर्ण और चैन से नहीं रह सकते।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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