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________________ तुम भी कुछ ऐसी अनुभूतियों को जानते हो जो बतलायी नहीं जा सकतीं। जब तुम अत्यंत गहरे प्रेम में पड़ते हो, तो क्या करते हो? तुम इसे अर्थहीन पाओगे केवल यही कहते चले जाने को कि, 'मैं तुम्हें प्यार करता हूं मैं तुम्हें प्यार करता हूं।' और अगर तुम कहते ही चले जाते हो, तो दूसरा ऊब जायेगा। अगर तुम कहे जाओ, तो दूसरा सोचेगा, तुम तो बस एक तोते हो। और अगर तुम इसे जारी रखते हो, तो दूसरा सोचेगा कि तुम्हें मालूम नहीं, प्रेम क्या है। जब तुम प्रेम का अनुभव करते हो, तब यह कहना निरर्थक हो जाता है कि तुम प्रेम करते हो। तुम्हें कुछ करना पड़ता है-कुछ अर्थपूर्ण। वह एक चुम्बन हो सकता है, वह एक आलिंगन हो सकता है। यह हो सकता है कि कुछ न करना और केवल दूसरे का हाथ अपने हाथ में लिये रहना। लेकिन यह कुछ सार्थकता रखता है। तुम कुछ व्यक्त कर रहे हो जो शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है। बुद्ध ने वह कुछ दे दिया जो शब्दों द्वारा नहीं दिया जा सकता है। उन्होंने फूल दिया। वह उपहार था। वह उपहार सामने दिख रहा था, लेकिन वह कुछ जो नहीं दिखायी पड़ता था, दिया जा रहा था उपहार के साथ। जब तुम अपने मित्र का हाथ अपने हाथ में लेते हो, यह प्रत्यक्ष होता है। मित्र का हाथ अपने हाथ में ले लेना भर कोई ज्यादा भाव नहीं बनाता, लेकिन कुछ और प्रवाहित हो रहा है। यह एक विनिमय है। कोई ऊर्जा, कोई अनुभूति, कुछ इतना कि जिसे शब्द अभिव्यक्त नहीं कर सकते, प्रवाहित हो रहा होता है। यह एक संकेत होता है। हाथ एक संकेत मात्र है। वह सार्थकता जो हस्तांतरित हो रही है वह अदृश्य है। वह कोई संदेश नहीं-स्थ उपहार है, एक प्रसाद है। बुद्ध ने स्वयं अपने को दे दिया। उन्होंने कोई संदेश नहीं दिया था। उन्होंने स्वयं को प्रवाहित कर दिया महाकाश्यप में। दो कारणों से महाकाश्यप इसे पाने के योग्य हुआ था। एक तो यह कि वह समग्र स्वप्न से मौन रहा जब बुदध मौन थे। दूसरे भी ऊपरी तौर पर तो मौन थे. लेकिन नहीं थे वे वास्तव में। वे लगातार सोच रहे थे, 'बुद्ध मौन क्यों है?' वे एक-दूसरे की ओर देख रहे थे, संकेत कर रहे थे और हैरान हो रहे थे।'बुद्ध को क्या हुआ है गु: क्या वे पागल हो गये हैं? वे इतने चुप तो कभी नहीं हुए थे।' वास्तव में मौन कोई न था। दस हजार भिक्षुओं की उस विशाल सभा में, केवल महाकाश्यप मौन था। वह बेचैन न था,वह सोच-विचार नहीं कर रहा था। बुद्ध फूल की ओर देख रहे थे, और महाकाश्यप बुद्ध की ओर देख रहा था। और तुम बुद्ध से बड़ा फूल नहीं पा सकते। वे मनुष्य की चेतना की उच्चतम खिलावट, उच्चतम विकास थे। बदध फूल की ओर देखते रहे और महाकाश्यप बुद्ध की ओर देखता रहा। केवल दो व्यक्ति नहीं सोच रहे थे। बुद्ध सोच नहीं रहे थे; वे मात्र देख
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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