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________________ इसीलिए मैं कहता हूं कि वे तर्कसंगत हैं और तुम जानोगे कि वे किस तरह तर्कसंगत हैं। वे शरीर से आरंभ करते हैं क्योंकि तुम शरीर में बद्धमूल हो। वे तुम्हारी श्वास- क्रिया से प्रारंभ करते हैं और उस पर कार्य करते हैं, क्योंकि श्वास तुम्हारा जीवन है। पहले वे शरीर पर कार्य करते हैं, और फिर वे प्राण पर अस्तित्व की दूसरी परत तुम्हारे श्वसन पर कार्य करते हैं। फिर वे विचारों पर कार्य करना आरंभ करते हैं। , बहुत-सी विधियां हैं जो सीधे विचार से ही आरंभ होती हैं। वे बहुत तर्कयुक्त और वैज्ञानिक नहीं हैं क्योंकि आदमी, जिस पर कि तुम्हें कार्य करना है, शरीर में ही बद्धमूल होता है। वह 'सोमा' है, एक शरीर एक वैज्ञानिक पहुंच को शरीर से आरंभ करना चाहिए। पहले तुम्हारे शरीर को बदलना होगा। जब तुम्हारा शरीर बदलता है, तब तुम्हारा श्वसन बदला जा सकता है। जब तुम्हारा श्वसन बदलता है, तब तुम्हारे विचार बदल सकते हैं और जब तुम्हारे विचार बदलते है, तब तुम बदल सकते हो। तुमने शायद खयाल न किया हो कि तुम बहुत-सी परतो की साथ-साथ जुडी एक क्रमबद्धता हो । यदि तुम दौड़ रहे होते हो, तब तुम्हारी श्वास- क्रिया बदल जाती है क्योंकि ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। जब तुम दौड़ रहे होते हो, तुम्हारी श्वास- क्रिया बदल जाती है। और जब तुम्हारी श्वास- क्रिया बदलती है, तुम्हारे विचार तत्काल ही बदल जाते है। तिब्बत में कहते है कि यदि तुम क्रोधित होते हो, तो बस दौड़ लगाओ अपने घर के चारों ओर दो-तीन चक्कर लगा लो, और फिर वापस आ जाओ और देखो तुम्हारा क्रोध कहां चला गया है। क्योंकि यदि तुम तेज दौड़ते हो, तुम्हारा श्वसन बदलता है यदि तुम्हारा श्वसन बदलता है, तुम्हारा सोचने का ढांचा वैसा ही नहीं बना रह सकता। वह बदलता ही है। लेकिन दौड़ने की कोई आवश्यकता नहीं । तुम केवल पांच गहरी सांसें ले सकते हो। सांस बाहर छोड़ो और सांस भीतर लो, और देखो तुम्हारा क्रोध कहां चला गया। सीधे तौर पर क्रोध को परिवर्तित करना कठिन होता है। यह ज्यादा आसान है शरीर को परिवर्तित करना, फिर श्वसन को और फिर क्रोध को। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसीलिए मैं कहता हूं कि पतंजलि वैज्ञानिक है। कोई दूसरा इतना वैज्ञानिक नहीं रहा है यदि तुम बुद्ध के पास जाओ, तो वे क्रोध को गिरा देने के लिए कहेंगे। पतंजलि ऐसा कभी नहीं कहेंगे। वे कहेंगे कि यदि तुम क्रोधित हो, तो इसका अर्थ है, जो तुम्हारा श्वसन क्रिया का ढांचा है वह क्रोध करने में मदद करता है। और जब तक श्वसनक्रिया का यह ढांचा नहीं बदलता है, तुम क्रोध को नहीं मिटा सकते। तुम इसके साथ संघर्ष कर सकते हो, लेकिन उससे मदद नहीं मिलने वाली या ऐसा करना बहुत अधिक समय ले सकता है। यह अनावश्यक है। इसलिए वे तुम्हारे श्वसन का ढांचा, सांस की लय ध्यान से देखेंगे। और यदि तुम्हारी
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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