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________________ नहीं था। कई बार ऐसा होता कि उसे सारे दिन प्रतीक्षा करनी पड़ती, लेकिन वह उनका दर्शन किये बिना नहीं जाता। वह खाना नहीं खाता, जब तक साईंबाबा के दर्शन न कर लेता। एक दिन ऐसा हुआ कि सारा दिन बीत गया, और वहां बहुत से लोग इकट्ठे हुए थे, एक बड़ी भीड़, इतनी बड़ी कि वह प्रवेश नहीं कर सका। जब हर कोई चला गया, तो रात को उसने साईंबाबा के चरण-एकर्श किये। साईंबाबा ने उससे कहा, 'क्यों तुम नाहक प्रतीक्षा करते हो? यहां आकर मेरे दर्शन करने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं तुम्हारे पास आ सकता हूं। इसे कल से छोड़ दो। अब मैं आ जाऊंगा तुम्हारे पास। इससे पहले कि तुम अपना भोजन लो, तुम मेरा दर्शन पाओगे।' __वह शिष्य बहुत प्रसन्न था। अगले दिन वह प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन कुछ घटित नहीं हुआ। वस्तुत: बहुत कुछ घटित हुआ, लेकिन उसकी परिकल्पना के अनुसार कुछ घटित नहीं हुआ। शाम तक वह बहुत नाराज हो गया। उसने अभी तक भोजन नहीं लिया था, और क्योंकि साईंबाबा अब भी प्रकट नहीं हुए थे, वह फिर उनके दर्शन के लिए चला गया। वह बोला,' आप वचन देते हैं और उसे पूरा नहीं करते?' ___ साईंबाबा बोले, 'सिर्फ एक बार ही नहीं, तीन बार प्रकट हुआ। जब पहली बार मैं आया, मैं एक भिखारी था। तुमने मुझसे कहा, 'दूर हटो। यहां मत आओ।' दूसरी बार जब मैं तुम्हारे पास आया, एक बूढ़ी सी के स्वप्न में., और तुमने मेरी ओर देखा तक नहीं। तुमने अपनी आंखें बंद कर लीं।' स्रियों की ओर न देखना उस शिष्य की आदत थी। वह स्रियों को न देखने का अभ्यास कर रहा था, इसलिए उसने अपनी आंखें बंद कर ली थीं। साईंबाबा बोले, 'मैं आया था। लेकिन तुम क्या आशा रखते हो?मैं तुम्हारी आंखों में प्रवेश कर जाऊं–बंद आंखों में? मैं बिलकुल वहीं खड़ा हुआ था, लेकिन तुमने अपनी आंखें बंद कर लीं। फिर तीसरी बार तुम्हारे पास कुत्ते के स्वप्न में आया, लेकिन तुमने मुझे अंदर नहीं आने दिया। तुम एक डंडा लेकर दरवाजे पर खड़े हो गये।' और ये तीनों बातें वस्तुत: घटित हुई थीं। ऐसी बातें सारी मानवता के साथ घटित होती रही हैं। भगवत्ता बहुत स्वप्न में आती है, लेकिन तुममें पूर्वधारणाए होती हैं; तुममें पूर्वगठित परिकल्पना होती है, तुम देख नहीं सकते। परमात्मा को तुम्हारे अनुसार प्रकट होना चाहिए। और वह कभी तुम्हारे अनुसार प्रकट नहीं होता है। वह कभी तुम्हारे अनुसार प्रकट होगा भी नहीं। तुम उसके लिएनियम नहीं हो सकते और तम कोई शर्ते नहीं बना सकते। जब सारी कल्पनाएं गिर जाती हैं, केवल सत्य प्रकट होता है। वरना कल्पनाशक्ति शर्ते बनाती जाती है और सत्य प्रकट नहीं हो सकता। केवल नग्न मन में, शून्य में, खाली मन में ही सत्य प्रकट होता है क्योंकि तब तुम उसे विकृत नहीं कर सकते।
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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