SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुमान भी सम्यक ज्ञान का स्रोत हो सकता है। तर्क का उपयोग भी सम्यक ज्ञान के स्रोत की भांति किया जा सकता है। लेकिन तुम्हें इसके प्रति बहुत जागरूक होना है कि तुम क्या कर रहे हो। यदि तुम केवल तर्कपूर्ण हो, तो तुम इसके द्वारा आत्महत्या कर सकते हो। तर्क आत्महत्या न सकता है। वह यही बनता है बहुतों के लिए। अभी कुछ दिन पहले एक खोजी कैलीफोर्निया से यहां आया हुआ था। वह बहुत दूर से घूमता हुआ आया था। वह यहां मुझसे मिलने आया था। वह कहने लगा, 'मैंने सुना है कि जो कोई आपके पास आता है आप उसे ध्यान में धकेल देते हैं। तो इससे पहले कि मैं ध्यान करूं या इससे पहले कि आप मुझे ध्यान करने के लिए कहें या इससे पहले कि आप मुझे धकेले, मेरे बहुत-से प्रश्न हैं।' उसके पास कम से कम सौ प्रश्नों की सूची थी। मुझे नहीं लगता कि उसने कोई संभव प्रश्र छोड़ा था। उसके पास ईश्वर के बारे में प्रश्न थे, आत्मा के बारे में, सत्य के बारे में, स्वर्ग-नरक के बारे में और हर चीज के बारे में। एक लंबा कागज प्रश्नों से भरा हुआ था। वह बोला, 'जब तक आप इन प्रश्रों का समाधान नहीं करते, मैं ध्यान करने वाला नहीं।' वह एक तरह से तर्कसंगत है क्योंकि वह कहता है, 'जब तक मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया जाता, मैं ध्यान कैसे कर सकता हूं? जब तक कि मैं आश्वस्त अनुभव न करूं कि आप सही हैं; कि आपने मेरे संदेहों का समाधान कर दिया है, मैं उस दिशा में कैसे जा सकता हूं जिसे आप दिखाते और निर्देशित करते है? आप गलत हो सकते हैं। यदि मेरे शक मिट जाते हैं तो ही आप अपना सहीपन सिद्ध कर सकते हैं।' लेकिन उसके शक ऐसे हैं कि वे मिट नहीं सकते तो यह है असमंजस, यदि वह ध्यान करता है तो वे मिट सकते हैं। लेकिन वह कहता है कि वह केवल तभी ध्यान करेगा जब उसके शक न रहें। क्या किया जाये? वह बोला, 'पहले प्रमाण दीजिए कि ईश्वर है।' किसी ने कभी प्रमाणित नहीं किया। कोई कभी कर नहीं सकता। इसका मतलब यह नहीं है कि ईश्वर नहीं है; लेकिन उसे सिद्ध नहीं किया जा सकता है। वह कोई छोटी वस्तु नहीं है जिसे सिद्ध या असिद्ध किया जा सकता हो । ईश्वर इतना जीवंत है कि, तुम्हें उसे जीना होगा उसे जानने के लिए कोई प्रमाण मदद नहीं कर सकता। लेकिन तर्कसंगत ढंग से वह सही है। वह कहता है, 'जब तक आप प्रमाणित न करें, मैं कैसे आरंभ करूं? यदि आत्मा नहीं है, तो कौन ध्यान कर रहा है? इसलिए पहले सिद्ध करें कि आत्मा है, तब मैं ध्यान कर सकता यह आदमी आत्महत्या कर रहा है। उसे कोई भी कभी उत्तर नहीं दे पायेगा । उसने सारी बाधाओं की रचना कर डाली है और इन्हीं घेरों के कारण वह विकसित नहीं हो पायेगा। लेकिन वह तर्कपूर्ण है। ऐसे व्यक्ति के (नाथ मुझे क्या करना होगा! यदि मैं उसके प्रश्नों का उत्तर देने लगता हूं तो ऐसा आदमी जो सौ संदेह बना सकता है वह लाखों संदेह बना सकता है। क्योंकि संदेह करना मन का एक ढंग है। तुम किसी प्रश्न का उत्तर दे सकते हो, और तुम्हारे उत्तर के कारण ही वह दस प्रश्र और खड़े कर देगा क्योंकि मन तो वैसा ही बना रहता है! '
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy