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________________ योग दर्शन-शास्र नहीं है। मैंने कहा, योग धर्म नहीं है। मैं यह भी कहता हु कि योग दर्शनशास्र नहीं है। __ यह कोई ऐसी बात नहीं जिसके बारे में तुम कुछ विचार करो। यह कुछ ऐसा है जैसा कि तुम्हें होना होगा। केवल सोचने-विचारने से कुछ नहीं होगा। विचार तो तुम्हारे मस्तिष्क में चलता रहता है, यह तुम्हारे अस्तित्व की जड़ों में कहीं गहरे नहीं होता। विचार तुम्हारी समग्रता नहीं है। यह तो मात्र एक हिस्सा है, एक कामचलाऊ हिस्सा; और इसे प्रशिक्षित किया जा सकता है। तुम तर्कपूर्ण ढंग से विवाद कर सकते हो, युक्तिपूर्ण विचार कर सकते हो, लेकिन तुम्हारा हृदय तो वैसा का वैसा ही बना रहेगा। तुम्हारा हृदय गहनतम केंद्र है, सिर तो उसकी शाखा मात्र है। तुम मस्तिष्क के बिना तो हो सकते हो, लेकिन हृदय के बिना नहीं हो सकते। तुम्हारा मन आधारभूत तत्व नहीं है। योग तुम्हारे समग्र अस्तित्व से, तुम्हारी जड़ों से संबंधित है। वह दार्शनिक नहीं है। इसलिए पतंजलि के साथ हम चिंतन-मनन नहीं करेंगे। पतंजलि के साथ तो हम जीवन के और उसके स्वपांतरण के परम नियमों को जानने का प्रयत्न करेंगे। पुराने की मृत्यु और सर्वथा नये के जन्म के नियमों को और अंतस की एक नव लयबद्धता की कीमिया को जानने का प्रयत्न हम करेंगे। इसलिए मैं योग को एक विज्ञान कहता हूं। पतंजलि अत्यंत विरल व्यक्ति हैं। वे प्रबुद्ध है बुद्ध, कृष्ण और जीसस की भांति; महावीर, मोहम्मद और जरथुस्त्र की भांति, लेकिन एक ढंग से अलग है। बुदध, कृष्ण, महावीर, मोहम्मद, जरथुस्त्र-इनमें से किसी का दृष्टिकोण वैज्ञानिक नहीं है। वे महान धर्म प्रवर्तक है, उन्होंने मानव-मन और उसकी संरचना को बिलकुल बदल दिया, लेकिन उनकी पहुंच वैज्ञानिक नहीं है। पतंजलि बुद्ध पुरुषों की दुनिया के आइंस्टीन है। वे अद्भुत घटना है। वे सरलता से आइंस्टीन, बोर, मैक्स प्लांक या हेसनबर्ग की तरह नोबल पुरस्कार विजेता हो सकते थे। उनकी अभिवत्ति और दृष्टि वही है जो किसी परिशदध वैज्ञानिक मन की होती है। कष्ण कवि हैं: पतंजलि कवि नहीं है। पतंजलि नैतिकवादी भी नहीं है, जैसे महावीर है। पतंजलि बुनियादी तौर पर एक वैज्ञानिक हैं, जो नियमों की भाषा में ही सोचते-विचारते है। उन्होंने मनुष्य के अंतस जगत के निरपेक्ष नियमों का निगमन करके सत्य और मानवीय मानस की चरम कार्य-प्रणाली के विस्तार का अन्वेषण और प्रतिपादन किया। __ यदि तुम पतंजलि का अनुगमन करो तो तुम पाओगे कि वे गणित के फार्मूले जैसी ही सटीक बात कहते हैं। तुम वैसा करो जैसा वे कहते है और परिणाम निकलेगा ही; ठीक दो और दो चार की तरह निश्चित। यह घटना उसी तरह निश्चित ढंग से घटेगी जैसे पानी को सौ डिग्री तक गर्म करें तो वाष्प बन उड़ जाता है। किसी विश्वास की कोई जरूरत नहीं है। बस, तुम उसे करो और जानो। यह कुछ ऐसा है जिसे करके ही जाना जा सकता है। इसलिए मैं कहता है कि पतंजलि बेजोड़ है। इस
SR No.034095
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages467
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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