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________________ रहने वाला मनुष्य अपने जज्बातो का गला घोट कर चुप क्यो हो जाता है ? उसे जो समझ में आता है, उसे जो दिखायी देता है, वह कहता क्यो नहीं ? घर, बाजार में, शाला में, कॉलेज में, दफ्तर में, मंदिर मे -मस्जिद में, अपने धर्म गुरुओ और राजनेताओ के सामने और मित्रो के बीच वह भीतर की बात बोलता क्यो नही ? क्या आपको ऐसा नही लगता कि इस कुण्ठा 'मनुष्य 'को तोडा है, इस चुप्पी ने उसे बिखेरा है ? आज वह अपने-आप सहज नही है । ने 'वाणी' मनुष्य की एक उत्तम ऊर्जा-शक्ति है जो उसे इसलिए मिली है कि वह उसकी मदद से अपनी परतें खोले, अपने साथी इन्सान की परतें खोले । वाणी एक कुजी है जो हृदय के द्वार खोलने की शक्ति रखती है, परन्तु आफत के मारे मनुष्य ने अपनी इस ऊर्जा का उपयोग खुद को खोलने के बजाए खुद को छिपाने में किया है। बच्चन ने कही लिखा है - " मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता ।” अब इस छिप-छिप कर साधु दीखने के मोह ने मनुष्य को भीतर से परास्त किया है । उसकी बढिया ऊर्जा-शक्ति 'वाणी' ठडी पड गयी है । यो बाहर से उसकी चहक निरन्तर बढी है-चुप तो वह रह नही सकता । ऐसा लगता है कि हमे बोलने का रोग हो गया है। ऐसा केन्सर जो ला-इलाज है । कितने भाषण -सूरमा है हमारे बीच जो एक दिन में दसदस बीस-बीस भाषण फटकार जाते हैं । प्रवचनो का अन्त नही । कुछ जमाते तो ऐसी हैं जो बोलने का ही धन्धा करती हैं। 'आकाशवाणी' का काम सिर्फ बोलना-ही-बोलना है । पादरी, साधु, पडित, कथावाचक, पुजारी, शिक्षक, व्याख्याता, गायक, फिल्मी कलाकार, नाटककार, आदिआदि सब अविरल बोलते रहते है, और जो व्यापार करते है वे बोले नही तो उनका व्यापार चले कैसे ? बेचारे हॉकरो और ठेलेवालो को तो गा-गाकर, चीख-चीखकर ही बेचना पडता है। कभी आपको शेयर बाजार मे और रेस के मैदान में जाने का अवसर मिला हो तो आप बोलने की महावीर ७४
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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