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________________ चलकर जाएगा तो जीवन लायेगा नहीं तो मीलो चलकर भी जड़ ही बनेगा। मनुष्य का अपना खुद का एक धरातल है, यदि कुछ उगाना है तो उसी पर उगाना होगा। उसकी बढिया उर्वरक कर्मशक्ति-भीड के सैलाब से बचानी होगी। जो बढिया बीज मनुष्य अपने साथ लेकर आया है उसे वह खुद अपने ही आगन में, अपने ही घरातल पर बोकर तो देखे, उसे उगाये तो? ऐसा न हो कि भीड मनुष्य की बढिया धरती को रौंधती चली जाए और जिस आत्मतत्त्व को मनुष्य अपने आगन में, अपने हाथ से, अपनी करनी से उगाना चाहता है, वह उगे ही नही और इस तरह मनुष्य के हाथ से उसका सार तत्व सदा-सदा के लिए खो जाए? भीड के घेरे से अलग हटकर मनुष्य जब अपने ही स्वधर्म में होता है, तो उसे वे सारे कर्तव्य सूझते हैं जो उसे मनुष्य का जीवन जीने का रास्ता देते हैं। यह स्वधर्म भीड मे कुचल रहा है। रौंदा जा रहा है। मनुष्य को भीड का, समारोहो का, जलसो का, वाहवाही का चटकीला स्वाद छोडना होगाऐसा किए बिना उसके हाथ अपना ही स्वधर्म नही लगने का। ०० जीवन मे? ७१
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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