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________________ अनजाने, बिना कोई बोझ महसूस किये, बिना किसी सफोकेशन-घुटन के हमने उसे अपना लिया है। बल्कि, हमने अपना बहुत कुछ उसके हवाले कर दिया है। यह एक ऐसी बाढ है जो दिखायी नहीं देती, लेकिन उसमें आदमी का बहुत कुछ बह रहा है। नदियो मे बाढे आती हैं और धरती की उपजाऊ परत अपने साथ बहाकर ले जाती हैं। हमारे कृषितज्ञ इस सॉइल-इरोजन-भू-कटाव से बडे परेशान हैं और उन्हे यह आशका है कि इसी तरह भू-कटाव चलता रहा तो हमारी लाखो एकड उपजाऊ जमीनें बजर हो जाएगी। और इधर मनुष्य का जो लवण भीड मे बह रहा है उससे उसकी कितनी फरटिलिटी-कर्मशक्ति धुल जाएगी, कहना कठिन है। यो, काफी धुल चुकी है। मनुष्य अधिक गतिशील होकर, अधिक व्यस्त होकर, अधिक खपते हुए भी बहुत अकर्मण्य साबित हो रहा है । बात यह हो गयी है कि व्यक्ति खुद कुछ करे, जिस धर्म पर उसका भरोसा है उसे अपने जीवन में उतारे, इसके बजाय वह अपना धर्म भीड को सौंपकर अलमस्त है। अभी बड़े जोरो से हमे महावीर की याद आ गयी है। पच्चीस शताब्दिया बीत गयी उसका निर्वाण हुए, हमने ठीक सोचा कि कम-से-कम एक वर्ष तो उसकी याद मे बिताये । उसने जो कहा था उसे समझें, उस पर आचरण करे। अहिंसा का, सत्य का, प्रेम और करुणा का, आत्मबल का, शुद्ध और सही जीवन का जो मार्ग उसने बतलाया उसे खुद जाने, उस पर चले और दूसरो को जानने का और चलने का मौका दे। पर यह हो कैसे? व्यक्ति अपने पैरो पर तो है नही, वह भीड के रथ पर सवार है। उसने महावीर को भी भीड के सुपुर्द कर दिया है। पर महावीर व्यक्ति का है, भीड का बिलकुल नही। वह करनी का अधिक, कथनी का कम। वह बाहर की सारी डोरिया छोडकर अपने भीतर उलझी डोर सुलझाने वाला अन्तर्मुखी, आत्मजयी परमवीर । उसने मनुष्य को मुक्ति-बोध दिया, पर हमे गगनभेदी जयघोषो की चिन्ता है। चिन्तक परेशान है कि-'कही ६८ महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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