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________________ अपनी आत्मा की पुकार पर अपने आस-पास की रावण-रेखामों को लाया है। पर आप-हम सब क्या कर रहे हैं? दूसरो की प्रसन्नता या अप्रसन्नता को तौल रहे हैं। जिन रेखाओ को लाधना चाहिए उन्हें और-और गहरी कर रहे है। इस तरह हम अपने-आप मे लिपटकर लघु और लघुतर बन आतक भय की चौखट की एक और बाजू है-आतक । मानव सभ्यता का यह सर्वाधिक विषला तत्त्व है। अन्याय के प्रतिकार से इसने मनुष्य को पीछे हटाया है। मन मारकर अन्याय सहना सिखाया है । चप्पे-चप्पे पर फैली हमारी सारी दादागिरी, गंडागिरी, रोब, आतक (राज्य का हो चाहे समाज का), चौधरात, दलबदी ने मनुष्य को भयकर रूप से पिलपिला कर दिया है। आतक के साथ जुड़ गया है शोषण । एक चेन सिस्टम (लडी) है। मैं आपसे आतकित हूँ, आप मुझ से और लगातार सब एक-दूसरे सेऊपर से नीचे तक। एक जगह आतक मुझ पर लदता है तो दूसरी जगह मेरे आतक का बोझ कोई और दो रहा है। और इस तरह अन्याय सर्वव्यापी बन गया है। आतक और अन्याय को जब सह लिया जाता है तो जीवन की तर्ज ही बदल जाती है। मुझे लगता है कि आतक का विष कोबरा के विष से भी अधिक जहरीला है। वह मनुष्य से उसका मनुष्यत्व ही छीन रहा है। एक दादा पूरी बस्ती पर छा जाता है। कबीर को हरिगुण लिखने के लिए सात समन्दर की मसि चाहिये थी, पर मानवजाति के चप्पे-चप्पे पर चलने वाले अन्यायो की कहानी लिखने के लिए सात समन्दर की मसि से कुछ नहीं होगा। प्रन्याय इसीलिए शत-शत गुणित होकर पनप रहा है कि मनुष्य भीतर से भयभीत है और अपने ही बुने भय के ताने-बाने मे यह समझकर बैठा है कि वह सुरक्षित है। सीख रहा है वह पराक्रम और बन गया है भीरु । उसने अहिंसा-धर्म स्वीकारा है, वह सत्य का उपासक है और जीवन जी रहा है भय के सहारे। जीवन में?
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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