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________________ भय से घिरे हैं आप आप, हम-सब भय से घिरे है, और इस घेरे को तोड ही नहीं पा रहे है । व्यक्ति-स्वातत्र्य, हेबियस कारपस (न्याय पाने का हक) और मानवअधिकार के इस युग में भी मनुष्य स्वतत्र नहीं है। वह भय के कारावास में कैद है। सयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित 'चार्टर ऑफ ह्य मन राइट्स' (मानव-अधिकारो का घोषणा-पत्र) पढकर ऐसा लगता है कि मुक्ति के जितने हार हो सकते थे, वे सब मनुष्य के लिए खोल दिए गये हैं, फिर भी मनुष्य मस्त नही है। अपने-आप मे कैद है । वे दिन तो लद गये जब मनुष्य बिकता था। बस्ती के हाट-बाजारो मे उसकी नीलामी होती थी और वह अपने मालिक का आजीवन गुलाम बनता था। अब पूरा-का-पूरा मनुष्य नहीं बेचा जाता। यह अलग बात है कि मनुष्य खुद अपना श्रम बेचता है, अपनी अक्ल बेचता है, अपना ईमान बेचता है, अपना शील बेचता है और अपनी आत्मा बेचता है। मुक्ति का परवाना अपने हाथ मे लेकर भी वह अपनी हर चीज बेच रहा है। जीवन में
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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