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________________ मनुष्य उतर गया है कि आज तो न उसे आत्मबोध है और न समाजबोध । उसे केवल अपना शरीर-बोध है। और इसके लिए उसने अपने समूचे वैज्ञानिक ज्ञान को अड़ा दिया है। मनुष्य के हाथ में अपार शक्ति आयी है । वह धरती को उलट सकता है और नभ को परो तले रौंध सकता है, परन्तु विज्ञान का यह महायुग मनुष्य का सबसे अधिक लाचार युग है। जो वह नहीं चाहता वह सब उस पर लद गया है और बडी बेबसी से उसे बह ढोना पड़ रहा है। ___ जितना गहरा वह ज्ञान-विज्ञान मे धंसा, उतना ही महरा वह अध्यात्म में भी धंमा हुआ है। आत्मा और परमात्मा का सूक्ष्मतम विवेचन उसके पास है। भक्ति-मार्ग वाला हो, या साधना-मार्ग का साधक हो, अध्यात्म की गुफा में वह इतने भीतर पहुच गया है कि प्रकाश वहा है ही नहीं । शानविज्ञान मे भी वह गहरे उतर गया और अध्यात्म मे भी बहुत गहरे डूब गया। दोनो का कही मेल नहीं है। विज्ञान की सहायता से मनुष्य स्थूल-सेस्थूलतर और स्थूलतम बना है। अध्यात्म उसे सूक्ष्म-से-सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम होने की सीख देता है। आत्मा को पकडना हो तो यही एक मार्ग है। पर स्थूल और सूक्ष्म तो विरोधी दिशाएँ है-एक दूसरे को पकड ही नही पा रही है। इस कारण अपनी सम्पूर्ण समृद्धि-भौतिक जगत् की और अध्यात्म जगत् की-पाकर भी मनुष्य के हाथ समाधान नही लग रहा है। निश्चय ही आत्मा पर-द्रव्य से अलग है। और यह आत्मबोध प्राप्त किये बिना मनुष्य पदार्थ की दुनिया से अपने को अलग करके नही देख सकेगा। उसे निर्लिप्त होने की साधना करनी है। बस यही मनुष्य गच्चा खा जाता है । या तो वह पूरी तरह लिप्त होता है या सब कुछ छोडकर साधक और त्यागी बनता है। आराधना-घर में या मन्दिर मे वह अध्यात्म के, आत्म-चेतना के सरोवर में तैरता है और बाहर निकलते ही शरीरसेवा में लग जाता है। मानो, मनुष्य के ये दो अलग-अलग कत्र्तव्य जीवन मे?
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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