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________________ सम्यक-खो गया है 'सम्यक्' खो गया है, या यो कहे तो अधिक युक्ति-सगत होगा कि सम्यक् छोडकर मनुष्य ने और सब कुछ ग्रहण कर लिया है। दर्शन, ज्ञान, चारित्र (कृति) के विशाल समुद्र उसने रच लिये है और इन समुद्रो मे वह गहरे गोते लगा रहा है, ऐमा अमृत पाने के लिए जो उसे शाति दे, सुख दे और उसके सारे कष्टो का हरण कर ले । पर उसके हाथ विष-ही-विष लग रहा है। उसकी वेदनाएँ बढी है, उद्वेग बढा है, न उसे अपने मे चैन है और न बाहर का सुख ही उमे सन्तोष दे पाया है । 'दर्शन' की कुछ कमी है क्या? नभ-थल-जल, सब कुछ तो मनुष्य ने नाप डाले है । आज वह सचमुच उन सब चीजो का राजा है जो उसे दिखाई दे रही है-'मोनार्क ऑफ आल ही सर्वेज' । उसके पास 'ज्ञान' का अनन्त भण्डार है। हर चीज को उसने जाना है, जानने के साधन जुटाये है। मनुष्य के द्वारा एकत्र किये ज्ञान-भण्डार को देखकर मनुष्य स्वय ही आश्चर्यचकित है कि क्या यह सब उसने जाना है ? चारित्र (कृति) इतना भीमकाय, व्यापक और पेचीदा ५२ महावीर
SR No.034092
Book TitleMahavir Jivan Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManakchand Katariya
PublisherVeer N G P Samiti
Publication Year1975
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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